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और मनुष्यों की पर्षदा में धर्मदेशना देंगे । आपने जो देवों से अलंकृत पद्मसरोवर देखा इससे चारों निकाय के देव आप की सेवा करेंगे और आपने जो मालायुगल देखा उसका अर्थ मुझे मालूम नहीं होता । तब भगवान ने कहा- हे उत्पल ! जो मैंने दो माला देखी हैं उससे मैं दो प्रकार का धर्म कथन करूंगा, एक साधु धर्म और दूसरा श्रावक धर्म । फिर उत्पल भी प्रभु को वन्दन कर चला गया। वहां पर आठ अर्ध मासक्षमण द्वारा चातुर्मास पूर्ण कर प्रभु मोराक सन्निवेश में गये। वहां प्रतिमा धारण कर ठहरे हुए प्रभु की महिमा बढ़ाने के लिए सिद्धार्थ व्यन्तर ने उनके शरीर में प्रवेश किया । निमित्त बतलाने से प्रभु की महिमा पसरी। इस तरह प्रभु की महिमा देख ईर्षा से वहां रहते हुए अछंदक नामा एक नैमित्तिक ने प्रभु से तृण छेद के विषय में प्रश्न करने पर सिद्धार्थ ने कहा कि यह तृण छेदन नहीं होगा । यों कहने पर ज्यों ही वह तृण छेदन करने लगा त्योंही उपयोग पूर्वक वहां आकर इंद्र ने उसकी अंगुली छेदन कर दी। फिर रूष्ट हुए सिद्धार्थ ने लोगों से कहा कि यह निमित्तिया चोर है । प्रमाण पूछने पर कहा कि इसने वीरघोष कर्मकर के दश पल प्रमाणवाला बलटोया चुराकर खजूर के वृक्ष नीचे दबाया हुआ है। तथा इंद्र शर्मा का बकरा भी यहीं खा गया है और उसकी हड्डियां इसने अपने घर के सामनेवाली बेटी के नीचे दबा दी हैं । इसका दूसरा दूषण तो मुख से कहा नहीं जा सकता, वह इसकी स्त्री ही सुनायेगी । मनुष्यों ने उसके घर जाकर स्त्री से पूछा तो वह बोली हे मनुष्यों ! जिसका मुख भी न देखना चाहिये ऐसा यह दुष्ट है। क्यों कि यह अपनी भगिनी को भी भोगता है। मिसरानी उस दिन
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