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श्री कल्पसूत्र हिन्दी
छट्टा
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व्याख्यान
अनुवाद
117011
कर । जिसने प्रथम दान दिया है वहीं अब भी देने में समर्थ है, क्योंकि पानी के अर्थी जब सूखी हुई नदी खोदते हैं तब वह भी उन्हें पानी देती है । इस तरह स्त्री के वचनों से प्रेरित हो वह ब्राह्मण प्रभु के पास
आकर प्रार्थना करने लगा-हे प्रभो ! आप जगत के उपकारी हैं, आपने समस्त जगत का दारिद्र दूर किया म है । मैं निर्भागी उस समय यहां नहीं था और मुझे परदेश में भटकते हुए को भी कुछ नहीं मिला । इस
लिए पुण्यहीन, अनाश्रित और निर्धन मैं जगत को वांछित देनेवाले प्रभो ! आप के शरण आया हूँ? संसार * का दारिद्र दूर करने वाले के लिये मेरा दारिद्र दूर करना क्या बड़ी बात हैं? क्यों कि संपूरिता - शेषमहीतलस्य, पयोधरस्यादुम्तशक्तिभाजः । किं तुम्बपात्रप्रतिपूरणाय, भवेत्प्रयासस्य कणोपि नूनम् ||1|| जिसने सारे महीतल को भर दिया ऐसे अद्भुत शक्तिशाली मेघ को एक तुंबा भरने में क्या प्रयास करना. पड़ेगा ? इस प्रकार प्रार्थना करते हुए उस ब्राह्मण को करूणावन्त भगवन्त ने आधा देवदूष्य वस्त्र दे दिया । यहां पर कितने एक आचार्यों का मत है कि ऐसे दानेश्वरी भगवान ने बिना प्रयोजन वस्त्र का भी जो आधा भाग दान दिया सो प्रभु की संतति में होनेवाली वस्त्र पात्र पर मूर्छा को सूचित करता है । दूसरे कहते हैं-प्रथम जो ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हए थे उसी का वह संस्कार है ।
अब उस ब्राह्मण ने वह अर्घ वस्त्र ले कर उसके किनारे ठीक करने के लिए एक रफूकार को दिखलाया । उस रफूकार ने कहा है विप्र ! तू भी उसी प्रभु के पास जा वह निर्मम और करूणावान् प्रभु शेष आधा वस्त्र भी
की
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