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श्री कल्पसूत्र
हिन्दी
अनुवाद
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की वर्षा की ।
वहां से प्रभु विहार कर मोराकनामा सन्निवेश पधारे, वहां सिद्धार्थ राजा का मित्र दुइज्जत तापस रहता था उसके आश्रम में पधारे। भगवान को देखकर तापस सामने आया, पूर्व परिचय के कारण उससे मिलने के लिए प्रभु ने हाथ पसार दिये । उसकी प्रार्थना से प्रभु एक रात वहां रहकर निरागचित्त होते हुए भी उसके आग्रह से वहां चातुर्मास रहने का मंजूर कर अन्यत्र विहार कर गये आठ मास तक विचर विचर कर फिर वहां आ गये। । कुलपति द्वारा दी हुई एक घास की कुटिया में चातुर्मास रहे । वहां पर बाहर घास न मिलने से अन्य तापसों द्वारा अपनी अपनी झोपड़ी से निवारण की हुई गायें निःशंकतया प्रभु की झोंपड़ी का घास खाने लगीं । झोंपड़ी के स्वामी ने कुलपति के पास फरयाद की । कुलपति आकर प्रभु को कहने लगा कि हे वर्धमान ! पक्षी भी अपने अपने घोसलें का रक्षण करने में समर्थ होते हैं, फिर आप राजपुत्र होकर अपने आश्रम को रक्षण करने में क्यों असमर्थ हैं ? प्रभु ने विचारा कि मेरे यहां रहने से इसे अप्रीति होती है, यह विचार आषाढ शुदि पूर्णिमा से लेकर केवल पन्द्रह दिन गये बाद वर्षाकाल में ही प्रभु पांच अभिग्रह धारण कर अस्थिग्राम की ओर चले गये । वे अभिग्रह ये हैं ।
जहां किसी को अप्रीति पैदा हो ऐसे स्थान में न रहूंगा 1. सदैव प्रतिमाधारी हो कर रहूंगा 2, गृहस्थी का "विनय न करूंगा 3, सदा मौन रहूंगा 4, और हमेशा हाथ में ही आहार करूंगा 5।
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छुट्टा
व्याख्यान
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