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श्री कल्पसूत्र हिन्दी
AURA
छट्टा
व्याख्यान
अनुवाद
116811
वीर वीर कहकर आप के दर्शन से तथा प्रेम के प्रकर्ष से हम अत्यानन्द प्राप्त करते थे, परन्तु निराश्रित हुए अब हम किसका आश्रय लेंगे ? तथा हे बान्धव ! हमारी आंखों को अमृतांजन के समान अति प्रिय आप का दर्शन अब हमें कब 5
होगा ? हे प्रोट गुणों से शोभनेवाले ! निराग चित्त होते हुए भी क्या आप कभी हमें याद करेंगे? इस प्रकार बोलते हुए भार अश्रु पूर्ण नेत्र हो बड़े कष्ट से नन्दीवर्धन वापिस घर गये ।। ॐ अब दीक्षा के समय देवों ने जो प्रभु की गोशीर्षचंदन और पुष्पादि से पूजा की थी उसकी सुगन्ध प्रभु के शरीर पर
चार महीने से भी कुछ दिन अधिक रही थी । उस सुगन्ध से आकर्षित हो अनेक भ्रमर प्रभु के शरीर पर डंक मारते ।
हैं । कितने एक युवक प्रभु के पास आकर सुगन्ध गुटिकायें मांगते हैं परन्तु प्रभु तो मौन रहते हैं इससे वे प्रभु को उपसर्ग X करते हैं । युवती स्त्रियां भी प्रभु को अत्यन्त रूपवान् और सुगन्धित शरीरवाला देख कामविवश होकर अनुकूल उपसर्ग 4 करती हैं, परन्तु प्रभु मेरुपर्वत के समान निश्चल होकर सब कुछ सहन करते हुए विचरते हैं । उस दिन जब दो घड़ी दिन बाकी रहा था तब प्रभु कुमारग्राम में पहुंचे और वहां ही रात्रि को काउसग्ण ध्यान में रहे ।
उपसर्गों की शुरूआत उस समय जहां प्रभु खड़े थे वहां ही हल चलानेवाला एक ग्वाला सारा दिन हल चलाकर संध्या समय बैलों को प्रभु के पास छोड़कर घर पर गायें दुहने चला गया । वापिस लौट कर उसने प्रभु से पूछा कि- हे
की
換換候的
की
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