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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir श्री कल्पसूत्र हिन्दी पांचवा व्याख्यान अनुवाद 116311 (eth ann केवलज्ञान उत्पन्न हो तब तक टिकनेवाला अवधिज्ञान और अवधिदर्शन था । उससे वे अपने अनुत्तर एवं आभोगिक ज्ञानदर्शन से अपने दीक्षा समय को स्वयं जानते थे । अब वे सोना, चांदी, धन, राज्य, देश तथा सेना, वाहन, धन के भंडार, अन्न के भंडार, नगर, अन्तःपुर तथा देशवासी जनसमूह को त्याग कर, एवं रत्न, मणि, मोती, शंख, प्रवाल, स्फटिक, रक्त रत्न, हीरा, पन्नादि सार पदार्थ त्याग कर अर्थात् उन सार वस्तुओं को भी असार समझ एवं अस्थिर जान कर अर्थीजनों को दान करते हुए, जिसको जैसा देना उचित समझा उसको वैसा ही दे कर, गोत्रिय जनों को विभाजित 40 कर देकर प्रभु निकलते हैं । इस सूत्र से प्रभु का वार्षिक दान सूचित किया है । दीक्षा के दिन से पहले एक वर्ष रहने पर प्रातःकाल उठकर प्रभु वार्षिक दान शुरू करते हैं और वह दान सूर्योदय से लेकर मध्याह समय तक देते हैं । इस प्रकार प्रभु एक करोड़ और आठ लाख सुवर्णमुद्राओं का दान देते हैं । जिसको चाहिये वह मांगे ऐसी घोषणा पूर्वक जिसे * जो चाहता सो देते हैं । वह समस्त द्रव्य इंद्राज्ञा से देवता पूर्ण करते हैं । इस प्रकार एक वर्ष में तीन सौ अट्टासी करोड़ और अस्सी लाख सुवर्ण मुद्रायें दान में दी जाती हैं । यहां पर कवि उस वार्षिक दान का वर्णन करता है कि भिखारी जैसे वेष में रहे हुए अर्थी प्रभु के पास से जब समृद्ध होकर घर आते हैं तब उनकी स्त्रियां भी उन्हें पहचान नहीं सकी और उन्हें कहते है हम इसी घर के मालिक हैं इसलिए कशम शपथ दिला कर घर में आने देती हैं । उपहास करते कि देखो तुम्हारे घर में कोई अन्य Feanemy el For Private and Personal Use Only
SR No.020429
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh
Publication Year2002
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Paryushan, & agam_kalpsutra
File Size18 MB
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