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श्री कल्पसूत्र
पांचवा
हिन्दी
व्याख्यान
अनुवाद
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प्रतिमा के पास चांदी की चंद्रमा की मूर्ति प्रतिष्ठित कर के पूजन कर विधिपूर्वक स्थापित करे । फिर स्नान कराकर और उत्तम वस्त्राभूषण पहना कर प्रभु सहित प्रभु की माता को चंद्रमा के उदय में बुलावे और चंद्रमा के सन्मुख लेजाकर "ॐ"
चंद्रोऽसि, निशाकरोऽसि, नक्षत्रपतिरसि, सुधाकरोऽसि, औषधीगर्भोऽसि, अस्य कुलस्य वृद्धिं कुरु कुरु स्वाहा'' इस ॐ तरह चंद्र मंत्र उच्चारण करते हुए चंद्रमा का दर्शन करावे । फिर पुत्र सहित माता गुरु को नमस्कार करे, तब गुरू भी - * आशीर्वाद देवे कि समस्त औषधियों से मिश्रित किरण राशिवाला, समस्त आपत्तियों को दूर करने में समर्थ चंद्रमा प्रसन्न 2
होकर सदैव तुम्हारे वंश की वृद्धि करे । इसी प्रकार सूर्यदर्शन करावे, उसमें मूर्ति सूवर्ण या तांबे की रक्खे । मंत्र निम्न प्रकार है-ॐ अर्ह सूर्योऽसि, दिनकरोऽसि, तमोपहोऽसि, सहस्त्रकिरणोऽसि, जगच्चक्षुरसि प्रसीद प्रसी" । फिर गुरू आशीर्वाद दे कि-समस्त देव और असुरों को चन्दनीय, सर्व अपूर्व कार्यो को करनेवाले, तथा जगत का नेत्र समान सूर्य पुत्र सहित तुम्हे मंगल के देनेवाला हो । इस प्रकार चंद्र सूर्य दर्शन विधि जानना चाहिये । आजकल इस की जगह बालक को सीसा दिखलाते हैं।
इसके बाद छठे दिन रात्रि जागरण करते हैं । जब ग्यारह दिन बीत जाते हैं, अशुचि दूर हो जाती है अर्थात् जन्मकार्य समाप्त होने पर बारहवां दिन आने पर प्रभु के मातापिता बहुतसा अशन, पान, खादिम, स्वादिम चार प्रकार का भोजन तैयार कराते हैं । फिर अपने सगेसम्बन्धियों को, अपनी जातिवालों को, दास दासियों को तथा ऋषभदेव प्रभु के वंश के क्षत्रियों को जीमने के लिए बुलाते हैं । पूजादि का कार्य कर, कोतुक मंगल
गली 050000
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