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श्री कल्पसूत्र हिन्दी
चौथा
व्याख्यान
अनुवाद
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है । क्योंकि रोगादि गर्भ को हानिकारक होते हैं । सश्रुत नामक वैद्यक ग्रन्थ में कहा है कि- यदि गर्भवती स्त्री दिन में 2 निद्रा लेवे तो गर्भ भी निद्रालु या आलसी होता है. अंजन आजने से गर्भ अंधा होता है, रोने से गर्भ विकृत आंखों वाला होता है, स्नान तथा लेपन से दुःशील होता है, तेल मर्दन से कुष्ट रोगी होता है, नाखून काटने से खराब नाखूनवाला होता है । दौड़ने से चंचल स्वभावी, हसने से काले दांतोंवाला, काले होठवाला, काले तालुवेवाला और काली जीभवाला -
होता है । बहुत बोलने बकवाद से करनेवाला और अति शब्द सुनने से बहिरा होता है । अलेखन से स्खलित हो और - TE पंखे आदि का अति पवन सेवन करने से उन्मत्त होता है, पूर्वोक्त प्रकार से त्रिशला देवी को कुल की वृद्ध स्त्रियां शिक्षा ME
देती हैं । तथा कहती हैं कि-हे देवी ! तूं धीरे धीरे चल, धीरे धीरे बोल, क्रोध को त्याग दे, पथ्य वस्तुओं का सेवन कर, नाड़ा ढीला बांध, खिलखिला कर न हंस, खुले आकाश में न बैठ. अतिशय ऊँचे और नीचे न जा । इस प्रकार गर्भ से आलस्यवाली त्रिशला क्षत्रियाणी को शिक्षा देती हैं । त्रिशला क्षत्रियाणी भी गर्भ को हित करने वाली वस्तुओं का *
सेवन करती है । आरोग्यवर्धक पथ्य भोजन, सो भी समय पर ही करती है । कोमल शय्या और कोमल आसन सेवन म करती है । सुखाकारी मन के अनुकूल विहार भूमि अर्थात् गर्भ हितकर आचरणाओं से गर्भ का पोषण करती है। मा
गर्भ के प्रभाव से उत्पन्न हुआ उत्तम दोहला भी जिस का पूर्ण हो गया है । त्रिशला क्षत्रियाणी के मन में विचार पैदा हुआ कि मैं सर्व प्राणीयों की हिंसा बन्द कराने का पटह बजाऊ, दान दूं, गुरुजनों की अच्छी
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