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ॐ भावी कलिकाल की सूचना करनेवाला लक्षण है । जिस तरह नारियल के पानी में डाला हुआ कपूर मृत्यु के लिए होता है उसे
वैसे ही इस पंचमकाल में गुण भी दोष को करनेवाला होगा । इस प्रकार श्रमण भगवन्त श्री महावीर प्रभु ने माता को उत्पन्न हुआ अपने सम्बन्ध में इच्छित, प्रार्थित और मन में रहा हुआ संकल्प अवधिज्ञान से जान कर अपने आप को एक बाजू से
हिलाया । तब गर्भ की कुशलता जान कर त्रिशला क्षत्रियाणी हर्षित तथा संतुष्ट हो कर बोल उठी-निश्चय ही मेरा गर्भ हरन । ॐ नहीं किया गया, मरा नहीं, चलायमान नहीं हुआ और गला भी नहीं हैं, परन्तु वह पहले हलताचलता नहीं था, अब न हलनेचलने लगा है । यों कह कर हर्षित हुई, प्रसन्न हुई, यावत् हर्ष से पूर्ण हृदयवाली त्रिशला क्षत्रियाण विलास करने लगी।
। गर्भ की कुशलता मालूम होने से त्रिशला क्षत्रियाणी हर्ष से उल्लसित नेत्र वाली, स्मेर कपोलवाली, प्रफुल्लित - मुखकमलवाली तथा रोमांच कूचुकवाली होकर कहने लगी-मेरे गर्भ को कल्याण है । धिक्कार है | मैंने अति मोह युक्त मति
से कुविकल्प किये ! अभी मेरे भाग्य विद्यमान हैं, मैं तीन भुवन में मान्य हूं और मेरा जीवन धन्य एवं प्रशंसनीय है । मेरा व जन्म कृतार्थ है । श्री जिनेश्वर देव की मुझ पर पूर्ण कृपा है, तथा गोत्रदेवियोंने भी मुझ पर कृपा की है और मैंने जो श्री
जिनधर्मरूप कल्पवृक्ष की आज तक आराधना की है वह आज सफल हुई है । इस प्रकार अत्यन्त हर्ष युक्त्त चित्तवाली,
त्रिशला देवी को देखकर वृद्ध स्त्रियों के मुखकमल से जय जय नन्दा इत्यादि आशीष के शब्द निकलने लगे, कुलांगनाएं • हर्षपूर्वक मनोहर धवल मंगल गाने लगी, ध्वज, पताकायें उड़ने लगी, मोतियों के सवस्तिक पूरे जाने लगे, समस्त
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