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3 खादिम 4 स्वादिम, 5 वस्त्र 6 पात्र 7 कंबल 8 रजोहरण, 9 सूई, 10 उस्तरा 11 नाखून तथा दाँत सुधारने का अस्त्र और 12 कान साफ करने का साधन, यह बारह प्रकार का पिण्ड है । यह सब तीर्थकरों के तीर्थ में सब साधुओं को नहीं कल्पता । क्योंकि इस से अनेषणीय वस्तु का प्रसंग और उपाश्रय मिलना दुर्लभ हो जाय, इत्यादि बहुत दोष लगने का संभव है । यदि साधु सारी रात जागे और प्रातः काल का प्रतिक्रमण दूसरे मकान में जा कर करे तो वह मूल उपाश्रय का स्वामी शय्यातर नहीं होता और यदि साधु वहां निद्रा लेवे और प्रतिक्रमण दूसरे स्थान पर करे तो उन दोनों स्थानों का स्वामी शय्यातर होता है । एवं चारित्र की इच्छावाला उपधिसहित शिष्य तथा तृण, मट्टी के डले, भस्म (राख), मल्लक (कुंडी प्याला) काष्टपट्टक, चौकी, संथारा और लेप आदि वस्तुयें शय्यातर की भी कल्पती हैं। यह तीसरा शय्यातर आचार है।
3 राजपिण्ड
राजपिण्ड सेनापति, पुरोहित, नगरशेठ, मंत्री और सार्थवाह- इन पांचों सहित राज्यपालन करनेवाला और जिसको राज्याभिषेक मूर्धाभिषिक्त हुआ हो अर्थात् जिसके मस्तक पर अभिषेक हुआ हो सक राजपिण्ड कहलाता है। वह अशन, पान, खादिम, स्वादिम, वस्त्र, पात्र, कंबल और रजोहरण 8 प्रकार का कहलाता है सो पहले और अन्तिम तीर्थकरों के साधुओं को राजकुल में आने जाने में सामन्त आदि से स्वाध् याय का विनाश होने का संभव है, तथा साधुओं को देख कर अपशकुन बुद्धि से शरीर को व्याघात
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