________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अधिक पुराना नहीं है । इन भण्डारों की स्थापना का विशेष कोई इतिहास प्राप्य नहीं है। श्री महावीर स्वामी मन्दिर के भण्डार खरतर गच्छ के प्राचार्य श्री यशसूरिजी व उनके शिष्य श्री केशरमरिण द्वारा विक्रम की 20वीं शताब्दी में व्यवस्थित रूप से संकलित किये गये थे । केवल श्री कुंथुनाथजी के मन्दिर के भण्डार को छोड़कर ( जो कि पायवन्द गच्छ के प्राचार्य श्री पार्श्वचन्दजी द्वारा स्थापित किया हुम्रा प्रतीत होता है ) बाकी के सब भण्डार जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ की ग्राम्नाय वालों द्वारा स्थापित व व्यवस्थित है और इसी कारण प्रायः करके सभी भण्डारों के ग्रन्थ एक सरीखे ही है ।
यह सूची पत्र किस प्रकार बनाया गया है तत्सम्बन्धी जानकारी व स्पष्टीकरण निम्नलिखित " संकेत" में दिये जा रहे हैं इस सूची पत्र का सही रूप में उपयोग हो सके उस वास्ते उस लेख को ध्यान पूर्वक पूरा पढ़ लेना अनिवार्य है । उस पर भी यदि मुद्रित जानकारी व सूचना से किसी ग्रन्थ के बारे में पाठक वृन्द को संतोष न हो, शंका हो या विशेष जिज्ञासा हो तो प्रार्थना है कि हमसे सम्पर्क करें | प्रति आदि उपलब्ध कराने में और उन्हें हर प्रकार से सहयोग देने में हम हमारा अहोभाग्य समझेंगे |
• संकेत ●
मोटे तौर पर यह सूचीपत्र प्रचलित केटेलोगस केटेलोगोरम (Catalogus Catalogorum) पद्धति व भारत सरकार द्वारा निर्धारित प्रपत्रानुसार बनाया गया है । ग्रन्थों का विभागीकरण विषय सूची के अनुसार है । वह भी लगभग सरकारी विषय विभाजन से मेल खाता है । चूंकि यह सूची पत्र जैन ज्ञान भण्डारों का है इसलिये इसमें जैन ग्रन्थों की बहुतायत है । यद्यपि सरकारी प्रपत्र के अनुसार सभी प्रकार के जैन ग्रन्थों को केवल एक ही भाग नम्बर सातवें में डाला जाता है परन्तु हमने आवश्यक समझकर इन जैन ग्रन्थों को चार भागों (1 से 4 ) में बांटा है जिनके पुनः क्रमश: 2+2+3+2 कुल मिलाकर 9 विभाग किवे हैं और पहिले भाग के दूसरे विभाग के पांच उपविभाग किये हैं । अत भाग 1 से 4 तक सभी विभाग व उपविभाग मिलकर सरकार द्वारा निर्धारित सातवें भाग केही अन्तर्गत प्राते है । भाग 5 जैनेत्तर धार्मिक ग्रन्थों का है जिसमें सरकार द्वारा निर्धारित भाग 1 से 10 (केवल उपरोक्त भाग 7 छोड़कर) इन 9 भागों के ग्रन्थों का समावेश है और उन्हें क्रमश: (प्र) से (प्रो) तक विभाजित कर दिया है। इसी प्रकार इस सूची पत्र के भाग 6, 7, 8 और 9 में क्रमश: सरकारी निर्धारित भाग 11, 12 से 16, 23 व 24 के ग्रंथों को अलग-अलग दिखा दिया है। और चूंकि भाग 17 से 22 व 25 तक के ग्रन्थ बिल्कुल थोड़ हैं अतः उन्हें इसे सूचीपत्र के प्रन्तिम भाग 10 में अवर्गीकृत शेष रूप में दिखा दिया गया है ।
I
जैन ग्रन्थों के भाग विभाग व उपविभाग के शीर्षकों को देखने से सारा विभाजन लगभग स्पष्ट हो जावेगा | हम आगमों की संख्या के विवाद में नहीं पड़ना चाहते है और जो कोई भी ग्रन्थ किसी भी सम्प्रदाय द्वारा आगम माना जाता है वह हमने ग्रागम में ले लिया है। चूंकि सांप्रदायिक खण्डन मण्डन विशेषकर धार्मिक क्रिया काण्ड से सम्बन्ध रखते हैं अतः इसे उस भाग का ही एक विभाग बना दिया है ।
तथा अमुक ग्रन्थ किस विभाग में डाला जाना चाहिये इस बारे में कई बार एक से अधिक मत संभव होते है अथवा एक ही ग्रन्थ में विविध प्रकार की विषय वस्तु होती है अतः एक दम निर्विवाद शुद्ध विभाजन असंभव हैं। और जो विभाजन किया गया उसके लिये एकान्त रूप से हमारा प्राग्रह भी नहीं है ।
For Private and Personal Use Only