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जैन तात्त्विक, श्रोपदेशिक व दार्शनिक :---
आत्मभेद दज्ञानादि मा.
11
योगतात्विक
17
प्राध्यात्मिक
दार्शनिक
19
""
11
"
"1
37
6
11
"1
:
"
ज्ञानविषयक पद
लोकस्वरूप
21
सं.
सं.मा.
सं.
7
मा
प्रा. सं
मा.
23
प्रा. मा
प्रा.सं.
"
प्रा.
प्रा.मा
मा.
"
STT.
मा.
प्रा मा.
प्रा
6
5
9*
*, 19 * 25 × 11 व 12 x भिन्न
26 × 12 x 13 x 42
27 × 13 × 17 × 38
29 × 1 3 × 10 × 31
25 × 11 × 14 × 50
50
29
2
248
5
4
5
6
7
8
11
6
7*
1 +1
4,5
3
4
8
3
70
www.kobatirth.org
16
8 A
25 × 13 × 1 2 × 34 संपूर्ण 105 दोहे
105 दोहे
104 श्लोक
3,3,5, 26 से 29 x 10 से 12
26*
22 x 12 x 15 x 48
26 x 10 x 16 x 42
25 × 11 × 17 x 46
25 x 12 x 20 x 56
26 x 12 व 25 x 11
25 × 10 × 16 × 60
24 × 12 × 12 × 28
26 x 11 x 10 x 33
25 x 10 x 18 x 50
27 × 1 2 × 13 × 40 संपूर्ण
26 × 11 × 11 x 37
14
27 x 13 x 14 x 36
31
31
26 x 11 x 11 x 47
अपूर्ण 49 श्लोक
संपूर्ण
"
11
26 × 11 x 10 x 34
27 × 13 × 16 × 48
25 × 11 × 11 × 50
28 x 12 x 11 x 34
25 × 10 × 10 × 34 संपूर्ण 68 गा /ग्रं 125
68/70 TT.
25 गा.
"
"
अपूर्ण
संपूर्ण 68 गाथा
1
37
21
21
31
39
अपूर्ण
संपूर्ण
31
9
17
पांच अधिकार ग्रं. 8000
11
"
24 TTT.
25 गा
25 गा. का
124 TT.
56 सर्वये
310 गा.
312 गा.
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1,875, सोजत, भनीदास
19/20at
19वीं
19वीं
19at
1904
10
1753 पाटण
अबादत्त
19वीं x तलजा
राम
19वीं
19वीं
19वीं रागपुर, प्रमस्ति / वृत्तिकार जयसिंह गुरु शिवप्रभ शास्त्र उद्धरण
18वीं
19वीं
1730
18at
18वीं
18वीं
19वीं
17वीं
1882
19at
1783
1580
16at
16at
[ 161
11
अंत में पुद्गलपरावर्त्त सावचूरिप्रास 11 गा
दो बार लिखा है
त्रैलोक्यदीपिका
नाम्नी