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40 -- अवचूरि (Elucidatory Version)
मूल ग्रन्थ के उस (प्रायः करके संस्कृत) रूपान्तर को प्रवरि कहते हैं जिसमें बिना विस्तार के भी भावार्थ फुल की तरह खिल जाता है । अव शब्द अनुगामी के अर्थ में है मोटा चूर्ण ही किया जाता है।
वाo= वाचना (Discourse)
शास्त्र सिवाने हेतु स्वाध्यायी को पाठ रूप में जो वनमा गुरु द्वारा दी जाती है उसे वावना कहते हैं। इसे देशी भाषा में 'बाबा' कह सकते हैं जिसमें व्याख्या व प्रशंसा दोनों का समावेश हो जाता है।
व्या0 = व्याख्यान (Lecture)
तदर्थ बुलाई गई संगोष्ठी में उस विषय पर ज्ञान कृत ढंग से दिये गये भापगण को व्याख्यान कहते हैं।
टिo=टिप्पणक (Annotation)
ग्रन्थ का खुलासा करने के लिये जो पद-टिप्पणियां की जाती है उन्हें टिप्पणक कहते हैं ।
चू0 = चूलिका (या चूड़ा (Excursus)
सुत्र सम्बन्धित या सुचित अर्थ की विशेष प्ररूपणा के लिए विशिष्ट संग्रह जो बहुधा ग्रन्थ के अन्त में जोड़ा जाता है, चूलिका या चूड़ा कहा जाता है । पहाड़ की चोटी के सहश मानो ग्रन्थ पर कलश हो।
पं0=पजिका (Expansion)
मूल ग्रन्थ के कतिपय अंशों का सारयुक्त विवेचन पंजिका कहलाता है। पंजिका पदभंजिका ।
टी0-टीका (Commentary)
अालोचना समालोचना करते हुए किसी भी ग्रंथ के तात्पर्य को बीगतवार व विस्तृत रूप से प्रकट करने वाले प्रबन्ध को टीका कहते हैं।
ato= alaraala (Vernacular)
साहित्यिक भाषा में लिखे गये मूल ग्रन्थ का वह संस्करण जो देशी बोलचाल की भाषा में व्यक्त किया जाता है बालाविबोध (बालामिबोध. बालावबोध, बाल बोध) कहलाता है ताकि सामान्य जन भी उसका लाभ उठा सके।
20= टब्बार्थ (Gloss)
पुरानी हस्तलिखित प्रतियों में अल्पपरिचित शब्दों या पदों के निर्वचन या भावार्थ की बहुधा उस प्रति में ही मुल इबारत के ऊपर सरल भाषा में (या देशी बोली में) की गई संक्षिप्त लिखावट को टब्बार्थ कहा जाता है। ऐसे स्पष्टीकरण को स्तबक भी कहते हैं ।
स्वो०= स्वोपज्ञवृत्ति (Own Dilation)
अपने ग्रन्थ को और अधिक सूबोध बनाने के लिये जब मूल लेखक स्वयं उस पर वृत्ति (या भाष्य प्रादि) लिखकर विस्तार करता है तो उसे स्वोपज्ञ वृत्ति (या भाष्यादि) कहते हैं।
दु० = दुर्ग पद पर्याय (या विषम पद बोध आदि) (Terminology Made-easy)
ग्रन्थ में पाये हुवे कठिन या दुर्गम्य शब्दों या पदावली का सरल भाषा में निर्वचन, परिभाषा अथवा अर्थ कथन, दुर्ग पद पर्याय कहा जाता है।
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