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कसे अंगपूजाकरतीहुई बहुततरुणस्त्रियोंके अत्यंत भ्रष्ट महामलिनऋतुधर्मद्वारा महाआशातनादि दुष्कर्मबंधहोताहै, यह महाआशातनादिकतो अवश्य नहिंहोनीचाहिये, इसकेप्रबंधमें स्वपरहितके लिये आप उचित आग्रह क्यों नहिं दिखलाते हैं ?
६ प्रश्न-श्रीजिनप्रतिमाजीकि थूकसें आशातना नहिं होनेके लिये मुखे मुखकोष बांधकर श्रावक श्राविका पूजाकरतेहै, इसी तरह श्रीजैनशास्त्रकी थूकसे आशातना नहिंहोनेकेलिये आपके महान्पूर्वज साधु साध्वीओंने मुखे मुहपत्तिकांनमेलगाके व्याख्यान करनेकी गुरुपरंपरासें चलीआई समाचारीको उत्थापी या नहिं किंतु कितनेकमुनिनामधारकोने श्रीजैनशास्त्रकी आशातना करनेके लिये उत्थापीहै, उससे यहलोकपूर्वजोंकी उक्त समाचारिसे विरुद्ध हैं या नहिं ? जैसे कि एक वस्तुकाविरुद्ध प्ररूपक मिथ्यात्वीहोवे तो फिर अनेकवस्तुकाविरुद्धप्ररूपक पुरुष क्यौं नहिं होवे, ___७ प्रश्न-तीरथनी आशातना नवि करिये, इस पूजाकी ढालमें पंडित श्रीवीरविजयजीने लिखा है, कि आशातना करता थकां धन हाणी, काया वली रोगेभराणी, इत्यादि तो श्रीसिद्धाचलजीतीर्थपर केई तरुणस्त्रियोंको ऋतुधर्मसंबंधी महामलीनरुधिरद्वारा श्रीजिनप्रतिमाजीकी अंगपूजामें आशातना अनुचित है या नहिं ?
८ प्रश्न-श्रीदेवगुरु धर्मको आराधनेका मुख्यकारण आशातना नहिं करना है, और उनको विराधनेका मुख्यकारणआशातना है, इसलिये इस दुःषम कालमें बहुततरुणस्त्रियोंको अकाल
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