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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४७ करवा थकी देवगुरु तथा धर्मनी महोटी आशातना थाय छै ते वात आ ग्रंथ वाचवा थकी विवेकी जनोना ध्यानमा तरत आवशे । इत्यादि लिखकर तपगच्छवालोंकी बनाई हुई ७० गाथाकी ऋतुवंतीस्त्रीकी सजाय और १८ गाथाकी छोतीभास तथा अंचल गच्छवालोंकी करी हुई ३३ गाथाकी सूतककी सजाय तथा ऋतुवंती स्त्रीके अधिकार संबंधी सिद्धांतोक्त ६ गाथाओं यह चार ग्रंथभेले छपवाये हैं उनमें विशेषतासे ऋतुवंती स्त्रीको दूसरे वस्त्र आदि नहीं छूने तथा पुस्तक श्रीजिन प्रतिमाको नहीं छूना पूजादर्शन इत्यादि बहुत कृत्योंका निषेध लिखा है, और अनेक दोष दुःखदंड लिखें हैं देखिये उस पुष्पवतीविचार नामकी पुस्तकमें तपगच्छवालोंकी करी हुइ सज्झाय लिखा है कि-ऋतुवंती नारियो परिहरे रे, बीजे वस्त्रे न अडके, सांजे रात्रे नारी मतफरो रे, मतवेसजो तडके ॥१॥ मतभालवी नारमालनीरे, छोडवा धर्म ठाम, प्रभुदर्शन पूजासद्गुरु रे, वांदवातजो नाम ॥२॥ पडिकमणुं पोषह सामाय करे, देववंदनमाला, जलसंघनें रथजातरारे, दर्शनदोषटाला ॥३॥रास वखाण धर्म कथारे, व्रतपच्चक्खाणमेलो, स्तवन सज्झाय रास गहुँलीरे, धर्मशास्त्रमखेलो॥४॥ लखj लखे नहीं हाथथुरे, न करे धर्मचर्चा, धूपदीवो गोत्रजारणारे, नहिं पूजा ने अर्चा ॥ ५॥ संघ जिमण प्रभावनारे, हाथे देजो मलेजो, बलिदान पूजा प्रतिष्ठानुरे, मतरांधीने देजो, ॥६॥ पडिलामे नहिं साधु साधवीरे, वस्त्र पात्र अन्नपान, रांक ब्राह्मणने हाथे आपे नहिं रे, दाण लोटने दान ॥१२॥ ऋतुवंती हाथे जलभरीरे, For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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