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एगारसीसु निविगयं अन्नया एगभत्तमवंजणजायखुड्डिअ, गिलागाइ मोत्तुं ॥५६॥ पइदिणं संपुण्णचिअवंदणादेवालए ॥ ५७ ॥ रत्तीए गुरुणो सोअत्थं टुप्परिआए जलोल्लिअचीवरखंडट्ठावणं अइसाराइसु लुहणयाइ धोवणभंडए धारेयव्वं ॥ ५८ ॥ चउमासि आधोवणि ।। ५९ ॥ वासाचउमासए सूरीणं दुकंबला निसिज्झा उवज्झायस्स एगकंबला वायणायरिअस्सय ॥६०॥ जेट्ट उवज्झाया महोवज्झाया इति भणंति न उण अन्ने ॥ ६१ ॥ आयरिअ नामं लेहाइसु अमुगआयरिअ इयलिहिअव्वं न उण सूरित्ति ॥६२॥ संघाडइ बाहिरिमए तस्संतिअंवत्थपत्त पुत्थयाइपडआसण कंबलसहि मूलगुरुणो दिजइ ॥ ६३ ॥ साहूसु कणिट्टो भोअणमंडली समुद्धरइ ॥६४॥ ओमरायणिआजलं विहरंति सेसाभत्ताइ ॥६५॥ वीसउसिरिमाल ओसवाल पोरुआडकुलसंभूओचे आयरिओहविजइ, उवज्झाओवितहेव, न उण दसाजातिओ महुतीयाणो ठाविजइ, वायणा गुरुजोवा सोवा, ठाविजइ, महत्तरा सिरिमालाचेव ठाविजइ ॥६६॥ पंथे सइजाय दुप्पडिलेहगोअरचरिअभंगोत्ति जहा जेडं साहुणो विस्सामिअ, सुहविहारोपुच्छिअन्चो ॥६७ ॥ साहूणं पढमोवहाणे बुड्ढे उत्तरज्झयणाइ जोगा बोढव्वा ॥ ६८॥ वीरस्स छक्कल्लाणया ॥६९॥ इति श्रीजिनपतिमरिसामाचारी, ॥३॥ ननु श्रीराजगच्छे एतत्सामाचारी त्रयातिरिक्तं व्यवस्थापनमपि किमपि वर्तते न वा, उच्यते वर्तते एव साधूनां शिक्षारूपं, तथाहि सर्ववस्त्रपात्रादि विहृत्य मूलगुरुभ्यो निवेदनीयं १ प्राभृतकादिपरिष्ठापने आचाम्लं अन्यत्र चातुर्मासिक १ सांवत्सरिक २ पारणातः ३ पात्रक्षालने कल्प
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