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दिट्ठी विसुद्धचारित्तो, नाणीपवयणभत्तो, गुरुजणसुस्सूसणा परमों ॥३१॥ जो पंचनमुक्कारं, परमो पुरिसो पराइभत्तीए, परियत्नेह पइदिणं, पयओ सुद्धपओगप्पा ॥ ३२ ॥ अडेवय अहसयं, अट्ठसहस्सं च उभयकालंमि, अहेव य कोडीओ, सो तइय भवे लहइ सिद्धि ॥ ३३ ॥ एसो परमो मंतो, परमरहस्सं परंपरं तत्तं, नाणं परमं णेअं, शुद्धं झाणं परं झेअं ॥ ३४ ॥ एयंकवयमभेअं, खाइय मच्छंपरा भुवणरक्खा, जोईसुन्नं बिंदु, नाओतारालवोमत्तो ॥ ३५ ॥ सोलसपरमक्खरबीअ, बिंदुगम्भोजगुत्तमो जोओ, सुअवारसंगसायर, महत्थपुवोत्थ परमत्थो॥३६॥ नासेई चोरसावय, विसहर जल जलणवंधणसयाई चिंतिजंतोरक्खस्स, रणरायभयाइं भावेण ॥ ३७॥ इति अरहणादिमहास्तोत्रम् ॥
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