________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
५२२
अणशण आराधना करके, समाधिपूर्वक अहमदावादनगर में देवलोक गए, ५८ ॥ ५९ मा श्री जिनसमुद्रसूरिजी के पाठ ऊपर, श्रीजिनहंससूरिजी भए, तिके सेवावा नगर वासी, चोपडा गोत्रीय, साहमेघराज पिता, कमलदेवी माता, संवत् १५२४ जन्म संवत् १५५६ वैशाख सुदि ३ के दिन रोहिणी नक्षत्रे श्रीवीकानेर नगरमें करमसी मंत्रीश्वरें लक्षद्रव्य खरचकरके, आचार्य पदका उच्छव किया, तथा भांडारजी के मंदिर के पास, श्रीनमिनाथजीका बिम्ब चैत्य की प्रतिष्ठा कराई, पीछे एकदा आगरा नगरमें रहनेवाले सं० डुंगरसीजी, मेघराजजी, सोमदत्त प्रमुख संघनें बहुत आग्रह करके, वीनती भेजके महाराजकों बुलाया, तत्र श्रीगुरुमहाराजभी वहांगए, तब वादशाह हाथी घोडा पालखी वाजत्र चामरादि आडंबर करके सहित श्री. गुरुमहाराजका प्रवेशमहोच्छवकरा, तिहां संघनें गुरुभक्ति संघभक्त्यादिक में दो लाख रुपिया खरच करा, पीछे फेर कोई चुगलखोरके चुगली करनें सें वादसाहनें फेर गुरु महाराजकों बुलवाए, धवलपुर में रखे, तब देवसहायसें गुरुमहाराज बादशाह के चितकों चमत्कारवताके प्रसन्नकरके, ५०० पांचसो केदीयोंको छोडायके, अमारिपटह वजवायके, उपासरे आए, तब समस्तसंघ बहुत हर्षित भया, फेर गुरुमहाराज अतिशय सौभाग्यधारक, तीन नगर के विषे तीन प्रतिष्ठाकारक, अनेक संघपतिप्रमुखपद स्थापक, पाटणनगरमें तीनदिनका अणशण आराधना करके समाधि संवत् १५८२ सीमें स्वर्गगए, तिस वखतमें संवत् १५६४ वर्षे मरुदेशके विषे आचार्य शान्तिसागरसें बृहद् आचार्यखरतरशाखा
For Private And Personal Use Only