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स्वाहा ॥ अथफलपूजालिख्यते ॥ पनशमोचसदाफलकर्कटैः, सुसुखदैः किल श्रीफलचिर्भटैः, सकलमंगलवांछितदायकौ, कुशलसूरिगुरोश्चरणौ यजे ॥ ८॥ ॐ ही श्री श्रीजिनकुशलसूरिगुरुचरणकमलेभ्यो फलं यजामहे खाहा ॥ अथ अर्धपूजालिख्यते ॥ जलसुगंधप्रसूनसुतंदुलैः, श्ररुप्रदीपकधूपफलादिभिः सकलमंगलवांछितदाय कौ, कुशलसूरिगुरोरणौ यजे ||९|| ॐ ही श्री श्री जिनकुशलसूरिगुरुच - रणकमलेभ्यो यजामहे स्वाहा ॥ इतिश्रीभट्टारकथी जिनकुशलसूरीश्वराणां लघु अष्टप्रकारी पूजा श्रीनारायणजीबाबाजी रचिता समाप्ता ॥
॥ अथ सद्गुरूणां आरती लिख्यते || पहली आरती दादाजीकी कीजे, दुखदोहगसव दूर हरीजे, जयजय सद्गुरु आरती कीजे, श्रीजिनकुशलसूरिसमरीजे, जयजयस० ॥ १ ॥ बीजीवी जपडतीधारी, भयवारण तूं ही सुखकारी, जयजयस ० ॥२॥ तीजीपरचा पूरकतेरी, दूरहरो सबदुर्मतिमेरी, जयजयस ० ३ ॥ चौथी मुगलपूत जियदायक, सुरवरहुकमधरेज्युं पायक, जयजयस ० ४ ॥ पांचमी पांचनदीजिण तारी, संघसकलनौ संकटवारी, जयजयस ० ५ ॥ छट्ठीयांभोवज्रविदारी, विद्यापोथीपरगटकारी, जयजयस ० ६ ॥ सातमी चौसठ जोगण साधी, सूरिमंत्र सुरनें आराधी, जयजयस ०, ७ ॥ इणविवसात आरती किजे, मनवंछित संपति फल लीजे, जयजयस०, ८ ॥ जिनलाभ खरतर गणधारी, सद्गुरुचरणकमल बलिहारी, जयजयस० ॥ ९ ॥ इति श्रीदादाजी की आरती संपूर्णा ||
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और श्रीजिनकुशल सूरिजी महाराजका चरित्र ऊपर दिया है और बडास्तवन छोटास्तवन संस्कृत प्राकृत स्तौत्रादिक सेंकडो वा
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