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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८१ त्तिदो, दोलतदोगुरु महारा, थांहरा विरुद अनेकहो, तो सेव्यां संकट टले, एहीजदादाताहरी टेकहो, दोल० १, जीती चोसठ योगिणी, वसकीया बावनवीरहो, संधमांहे थेसाधीया, पंचनदी पंचपीरहो दो० २, पडिक्कमणांमाहें बीजली, वलियवली झबकायहो, थे मंत्री राखीतिका, तूठीवरदेजायहो, ४, दो०, उच्छव करतां उच्चमें, मूओ मुंगलरो पूतहो, जापकरी जीवाडीयो, संघमाहें राख्यो दादे सूतहो ॥ ५॥ दोल०, वडनगररे ब्राह्मणें, देहरेधरी मृतगायहो, पंचपरमेष्ठिविद्याबले, पिसुनलगायापायहो ॥ ६ ॥ दो०, विक्रमपुर व्यापीमरी, थेदरकीया सहु दुःखहो, परवारपिणपोते कीयो, सहुने दीयो सुखहो ॥ ७॥ दो० ॥ अंबडहाथे अक्षरे, थे प्रगट्याततखेवहो, युगप्रधानजगतुंजयो, आखे अंबिका देवी हो ॥८॥ दो०, थांभोवनविदारीने, पोथीपरगट कीधहो, विद्या सुवर्णअक्षरे, उजेणी माहें लीधहो ॥ ९ ॥ दो०, इमविरुदघणा छे ताहरा, कहितांनावेपारहो, भागसंजोगे दादो भेटीयो, अडवडीयां आधारहो ॥ १० ॥ दो, हु छ सेवक ताहरो, थे आपोधन रिद्धहो, भुवनकीरति सुपसाउले, लाभउदेसुखसिद्धहो ॥ ११ ॥ दो०, इति गुरुदेवस्तुतिः, इत्यादि अनेक प्रकारका महाप्रभाव दुनियामे प्रसिद्ध है जो पुरुष गुरुभक्त आस्तिक है और कृतघ्नी नहिं है उसके लिये यह वात है और अबीभी कल्पवृक्षकी तरहफलदेते हैं और इन महापुरुषके विषयमें प्राचीन शास्त्रकार इसतरह गुणसमूह वर्णन करतें हैं, तथाहि-इहहि सकल प्रामाणिक लौकिक प्रकृष्टाचार For Private And Personal Use Only
SR No.020407
Book TitleJinduttasuri Charitram Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1928
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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