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बात अली, यह जनमत
इत्यादि
लियाथा जबसें जैनमत चला है, ६ कोई कहेता है कि हमारे गौतम ऋषिनें नाराज होकर यह जैनमत चलाया है, ७ कोई लिखता है कि और सब बात झूठी, यह जैनधर्म संवत् ६०० के लगभग चला है, इत्यादि अनेक विकल्प जैनधर्म विषई किये हुवे हैं, और करते जातें हैं, औरपिण जैनदेवविषयि जैनगुरुविषयि जैनआचारविषयि, अनेकविकल्प करतें है, केई कहते हैं कि जैनधर्मवाले ईश्वर नहिं मानते हैं, १ केई कहते हैं कि जैनधर्मवाले ईश्वर मानतें हैं पण भगवानकी नग्न मूर्ति रखतें हैं, इसलिये मंदिरमें जाना. दर्शन करना न चाहिये, २ केई कहतें हैं जैनलोक कुलाचारसें भ्रष्ट हैं, और कुलाचार करानेंवाले जैनीब्राह्मण कुलगुरुभी नहिं हैं, और जो आचार करते हैं, सो अन्यमतकी अपेक्षा करते हैं, और आचारशास्त्रभी जैनोंके नहिं हैं इसलिये नहिं करतें हैं, मलीन अपवित्र वस्त्रवाले दानदयाके उत्थापक गुरु होतें हैं, इत्यादि अनेक झूठे विकल्प किये हुवे पुस्तकोंमें देखके वा कोईके पास सुनके उन लोकोकों जो जैनतत्व जाननेवाले जैनतत्ववेत्ता विद्वज्जन लोक तो अवस्यहि झूठे समजते हैं, और हास्य करते हैं, क्योंकि मोहमदिराके नसेमें व्याप्त हुवे, जो वचन नहिं कहेने लायक हैं, सो कहे देते हैं, इससे देखा जाता है कि जितने पुराण हैं, उन सबमें एकेकसे विरुद्ध वाक्य हैं, जूदेजूदे ईश्वर मानणेंसें, तथा जूदेजूदे प्रकारसें जगत्सृष्टीकी रचना मानणेंसें एकेककी अपेक्षा एकेक झूठे होनेसें, जैनधर्मकी अपेक्षा सर्व झूठे होते हैं, क्योंकि जैनधर्म तो अनेकांतिक है, और अनादि है, और जीवस्वरूप जगत्कास्वरूप अनादि मानतें हैं, और संसारी सका जीव अनन्त है, कर्मरहित मुक्तभी अनन्त है, और भव्याश्रित संसारी सकर्माजीवोंके साथ कर्मका संबन्ध
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