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जम्बूचरित्रे
॥ ४७ ॥
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द्वारं द्वारं दरिद्रो वरमुदरदरीपूरणाय प्रवृत्तो, मानी धीमान् सनाथो न पुनरनुदिनं तुल्यकुल्येषु दीनः || ५४० ॥" एएणेव छलेणं, गच्छामो हच्छमेव ता एत्तो न फलाण बणे वुड्ढी, खलंगुली दंसीया णसिया ॥ ४१ ॥ “ नियपुन्नाण परिक्खा वियक्खणत्तं जणाण ववहारे । भासावेसविसेसाऽवगमो य न होइ नियदेसे ॥ ४२ ॥ " इय चिंतिऊण रत्तीए, दो वि ते निग्गया निरुव्विग्गा । इय वृत्तंतं कस्सवि, अकहंता नियजणस्सावि ।। ४३ ।। अइतुरियतरपयारा, अखंडपयाणएहिं ते पत्ता । अइगरुयाए एगाए, भीमरूवाए अडवीए ॥ ४४ ॥ दावेइ न बहुया, सुहासं जा सासुयव्व दुद्रुमणा । वरवणमालासोहाए, सूहवा विण्डुमि (मु) त्तिव्व ॥४५॥ दीसंति चित्तसीहा, मयमिगुणालंकिया नहसिरिव्व । सारंगमारणुज्जयपुंडरियक्खा हरिकहव्व ॥ ४६ ॥ तत्येगस्स महावडतरुणो छाया वीसमंतस्स । कुमरस्स अमरसेणस्स, आगया झत्ति सुहनिया ॥ ४७ ॥ बरसेणो पायंते, पाए संवाहए सुदनिसण्णो । जागरमाणस्स भयं च भीमसत्ताहिं नहु होइ ।। ४८ ।। अह वडवासीजक्खो, निरिक्खए लक्खणाई सुत्तस्स । चिंतइ किजंतो होइ बहुगुणो एत्थ उवयारो ।। ४९ ।। उवयारो किज्जइ सज्जणेण सव्वत्थ नत्थि संदेहो । चिंतेयव्यं एयं तु, किंतु कत्थेस वित्थरइ || ५५० || “ अहिमुहसिप्पिमुद्देसुं, अप्पेइ पयोहरो पर्यं जुगवं । एत्थ विसं अन्नत्थ, मोत्तियं तं पुणो होइ ॥ ५१ ॥ " वर - सेणो वि हु मा पंतिबंचिओ होउ पुन्नपुरिसोत्ति । परिभाविऊण जक्खो, पच्चक्खो भणइ वरसेणं ॥ ५२ ॥ अतिहीण दूरदेसा गयाण तुम्भाण किंचि उचियमहं । इच्छामि काउमिय तस्स अप्पए दोन्नि रयणाणि ॥ ५३ ॥ एगेग ताण रजं, सिज्झइ अनेण इच्छिया लच्छी । पढमं अप्पेयव्वं, सबंधुणो तुज्झ चेवन्नं ॥ ५४ ॥ पूइत्तु पणवमायासाहाहिं सत्तवार जवियाहिं । पणमित्त पत्थियत्थरस, होइ सिद्धी न संदेहो ।। ५५ ।। रयणा पडिच्छिया ते, दूरावज्जियसिरेण पंजलिणा । वरसेणेणं चेलंचलस्स गंठीए बद्धाय ॥ ५६ ॥ अंतरहिओ सुरो तो, खणंतरे उडिओ अमरसेणो । तिहिं वासरेहिं तो सा, महाडई लंघिया तेहिं ॥ ५७ पाडलिपुत्ते पत्ता, तप्परिसरसरवरस्स पालीए । विहियंगपायसोया, चूयतले वीसमंति सुहं ॥ ५८ ॥ तब्वेलं चैव कणीयसेण
१ धृत्या ।
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अमरसेनप्रवरसेनभ्रात्रोः कथा ।
॥ ४७ ॥