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जम्बूचरित्रे
॥ ३७॥
योगराज्ञा विसंवादि राज्यस्थिति प्रेक्षणम् ।
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योग०-यदि बकध्यानद्रव्यगाद्धर्थे तदा किमस्य भस्मजटाकू(जू)टाभ्याम् । का पुनर्बेश्या गणप्रामणीगणिका । पुरुषः-मयरदाढाए दुहिया बहुमाया।
अंखिहिं एगि निरिक्खइ एगई देइ मणु, अनि इब्भ बोलावइ अन्नहं देइ खणु ।
सिरि सिक्किरिउ लग्गहि केवि दुवारि तसु, रूलहिं अलत्तउ जेव मुक किवि लेवि रसु ।। ६६ ।। 6! योग-अहो एतस्य वैशिके प्रागल्भी। अमूदृशि सर्वसमवाये कीदृशी राज्यव्यवस्था । पुरुषः-कहं न कहिस्सं ।
एत्थु पट्टणि लोगु लुटुंतु चाहट्टइ हट्टि पुण जेण तेण जं, तंजि पलिजइ धरि बीहाइ बंदियह धीर कावि कासु वि न किज्जइ ।
नियचकहं परचकहं तणउ न भउ फिट्टेइ, आयउ देवह पइजणु कहिहि केव छुट्टेइ ।। ६७ ॥ अविय-जो जेण भिट्टिओ सो तेण पिट्टिओ, जो जेण दिदुओ सो तेण मुटुओ । जो जेण पाविओ सो तेण चाविओ, जो जेण वासिओ सो तेण नासिओ ॥१८॥
किंच-कोई विषयकजि जइ एइ, इह लेविण किंपि किर तासु तिग्जु निवदाणि दिजइ, तं डाहिवुडं गहणि जं सुहाइ तं लेइ निच्छइ । सेट्ठि बलाहिउ मंतिभडु बभणु सेसहं धाइ, खेमिकुसलि सो जइ कहवि वाह बिइज्जउ जाइ ।। ४६९ ॥
योग०–अहो राज्यस्थितिसौख्यं तन्मध्ये प्रविश्य प्रेक्षामहे तावत् । इत्युत्थाय पुरुषं विसृज्य प्राप्तः श्रेष्टिहट्टे, लयुबुडि श्रेष्टी दृष्ट्वा-कई जगए व पिया जोगराओ इति उट्ठेऊण जोहारेइ । आलिंगिऊण य उबवेसेइ उचासणे । कणभत्तण्सु पत्तीणमविजमाणेसु पत्तो हलकावण चेल्लउ उल्लवेइ । मज्झ एत्तो जंतयस्स तुम्ह पडलम्गाओ लग जडाजूडे तणखंडमेगमासि । तं सावगिलिगुरुहि गहेऊण पेसिओ ई अप्पणाय । जओ तिणकणोवि अकप्पणिजो णे अदिन्नो । करे करेह एयंति अप्पिऊण गओ सो नियढाणे ।
लिप्पद । १ तवि । ३ कलि B. DI४ दामिओ DI
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॥३७॥
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