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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ॥ १ ॥ Zezac www.kobatirth.org अनन्तलब्धिनिधानाय श्रीगौतमगणधराय नमः । ॥ सिरिजंबूसा मिचरियं ॥ इह भरहे मगद्दाविसय-भूसणो पुट्ठलट्ठगोट्टगणो । अवितद्दनामो गामो, सुगामो आसि सुपसिद्धो ॥ १॥ तत्थासि तत्थवाणी अज्जवं अज्जवंति रटुउडो । रेवइ देवी दिन्नत्ति, रेवई नाम से भज्जा ॥ २ ॥ पढमो पुत्तो तीसे, भवदत्तो भवभयत्तचित्तो सो(जो) । अवरो उण भवदेवो त्ति, भावओ देवपूयरओ ॥ ३ ॥ सुट्ठियसूरिसमीवे, देसणापेऊसवरिससित्ततणू । भवदत्तो पव्वइओ, कयाइ नवजोव्वणत्थो वि ॥ ४॥ तत्थ य गच्छे एगो, साहू सूरीण बंदणं दाउ । विन्नवइ जामि सन्नायगाण वंदावणत्थमहं ॥ ५ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अत्थि कणिट्ठो बंधू-उद्घुरपडिबंधबंधुरो धणियं । मइ दिट्ठे पव्वज्जं, पडिवज्जिस्सइ स सज्जो वि ॥ ६॥ गीयत्ये निग्गंथे, साहू सूरीहिं अप्पियसहाए | स विसज्जिओ समाणो गंतूण पुणागओ अइरा ॥ ७ ॥ पयपणउ पहुणो, विन्नवेइ वरिओ स तो न पव्यइओ । हसिऊण भवदतेण तो स एवमुवालद्धो ॥ ८ ॥ तुह बंधुस्स सुबद्धो, पडिबंधो साहु साहु निव्वडिओ । बरिओ विवाहिओ For Private And Personal Use Only ॥ १ ॥
SR No.020401
Book TitleJambuswami Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhsuri, Hemsagarsuri
PublisherDhanjibhai D Zaveri
Publication Year1957
Total Pages64
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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