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________________ SHA शांतिना- हमचडी ॥ ४॥ मात पीता नीशाले मुकें, आठ वर्षणां जांणि; इंद्रतणां तिहां संशय टाल्यां, नवं पंच क० थना. व्याकरण वखाणी रे हमचडी ॥ ५॥ अनुक्रमें यौवन पाम्यां प्रभुजी, वर्या जशोदा राणी; अठावीशे स्तवन वरसें प्रभुनां, मातपीता निर्वाणी रे हमचडी॥ ६॥ दोय वरस भाइने आग्रहें, प्रभु घरवासें वसीयां; ॥४०॥ धर्म पंथ देखाडो इमकहे, लोकांतिक उल्लसीयां रे हमचडी ॥७॥ एक कोडी आठ लाख सोनैयां, दिनदिन प्रभुजी आपें; इम संवच्छरी दान देइनें, जगनां दालीद्र का रे हमचडी॥ ८॥ छंडयु राज अंतेउर प्रभुजी, भाइए अनुमती दीधी; मागशीर शुद दशमी उत्तराए, वीरे दीक्षा लीधी रे हमचडी० ॥९॥ चउ नांणी तेणें दिनथी प्रभुजी, वरस दीवस झाझें रे; चीवर धरी ब्राह्मणनें दीg, है खंड खंड बे फेरी रे हमचडी ॥ १०॥ घोर परीसह साढेबारें, वरसें जे जे सहीयां; घोर अभीग्रह जे जे धरीयां, ते नवीजायें कहीयांरे हमचडी ॥ ११ ॥ शुल पाणीने संगम देवा, चंडकोशी गोशालें; दीधां दुःखने पायसराध्यु, पग उपर गोवाले रे हमचडी ॥ १२ ॥ कानें गोपें खीलां मारयां, काढता पाडी चीस; जे सांभलतां त्रीभुवन कंप्यां, पर्वत शीला फाटि रे हमचडी ॥ १३॥ ते ते दुष्ट सह -%AA%% For Fate And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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