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Achan Kailas
Gyamandi
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GEORGES CLASSES
___ वावूलभाईना अकाल वर्गवासथी तेनी मातुश्रीने असह्य घा पड्यो आथी तेओर्नु चित्त संसारथी विरक्त थयु अने परि| णामें पोते अत्रेना गुरुणीजी श्रीमती क्षांतिश्रीजी के ओए पोते पण लघु वयमा आचार्य श्री विजयसिद्धिसूरीश्वरजीना उपदेशथी गुरुणीजी श्रीमती विजयश्रीजी पासे दीक्षा ग्रहण करी मनुष्यपणुं सार्थक कर्यु हतुं तेमनी पासे सं. १९७२ना वैशाख सुदी तेरसे दीक्षा ग्रहण करी पुत्र वियोगथी अन्य स्त्रियोनी माफक सदैव खेद करी आर्तध्यानमां काळ निर्गमी मोहनीय कर्मबंध न करतां | उत्तम धर्मर्नु अवलंबन करी, पुत्र अवसान बहुधा दुःखनो हेतु छतां तेने सुख साधन निमित्त बनाव्यु । वळी दीक्षा ग्रहण कयाँ अगाउ | आ पुत्र पाछल तेमणे तथा मरनारना काका ठाकोरभाइये एक अट्ठाइ महोत्सव तथा उद्यापन करी पोताना घरनी पासेना श्रीसुविधि| नाथजीना देरासरमा प्रतिमाजी पधराव्यां छे, मृत पाछल बीना नकामां खर्च न करतां धर्मकार्यमा उद्यत थq एज उचित छे।।
आ पुस्तक गुरुणीजी श्रीक्षांतिश्रीजीए अत्यंत श्रम उठावी तैयार कयु परन्तु टुंका वखतमां सिद्धक्षेत्रमा सं. १९७६ ना | ज्येष्ठ वदी ३ने रोज तेमनो स्वर्गवास थवाथी ए तेमनी यातीमां प्रगट थइ शक्युं नहीं ए सहज खेद जनक छ, तथापि तेमना
सुशिष्या साध्वीजी तार श्रीजी तथा (आ बाबूलभाइना संसारी माता खीमकोर ) जयन्तीश्रीजीए पोताना गुरुणीनी साहेबनी | पुस्तक प्रगटन इच्छा पार पाडी ए संतोषकारक छे.
उपरांत तेओए गुरुवर्य आचार्य श्री विजयसिद्धिमूरिजीनी आज्ञानुसार निर्मम वृत्तिथी गुरुभक्ति निमित्ते पोताना गुरुणीजीना नामथी सुरतना देशाइपोळना उपाश्रयमा एक लघु ज्ञानभंडार खोल्यो छे, जेमा स्व० शांतिश्रीजीए करेलो पुस्तकोनो संग्रह
अर्पण करवामां आव्यो छे अने ते चतुर्विध संघना उपयोग माटे खुल्लो छे. शा० डाह्याभाई कालीदास किनारीवाला। दाता. १०-५-१९२३
॥ दयागुणः सर्वगुणप्रधानम् ॥
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