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________________ Shi Mahavir Jain Aradhana Kendra शांतिनाथना. ॥ १९ ॥ www.kobatirth.org. दिन दिन पडतो काल, क्रोध लोभ मद मत्सर वधशे, दे अणहुंता आल, गौतम सांभलो रे ॥ आंचली ॥९॥ चक्री आठ गयां नर मुक्ति, बे चक्री सुर मोटां; सुभुम राय ब्रह्म दत्त गया नरकें, | पुण्य काज हुआ खोटा ॥ १० ॥ गौतम सांभलो रे० ॥ वासुदेव नव निश्चयें होशे, नरकतणि लही वाटो; जे भुपति संग्राम करतां, त्रण सयां ने साठों ॥ गौतम० ॥ ११ ॥ रह्यां प्रति वासुदेव नव नीका, | नवि छंडे धन नारि; वासुदेव तणि करि मरंता, ते नरक तणां अधिकारी गौ० ॥ १२ ॥ नव बलदेव हुआ इणे आरे, नव नारद नर मोटा: छोटा गौ० ॥ १३ ॥ दुहा — गौतम अंतें हुं हुवो; तव काया कर सात; मुज शासन मां जेहवो, हसि ते भावात ॥ १४ ॥ ढाल ॥ २ ॥ सुर सुंदरी कहि शीर नामी ॥ ए देशी ॥ भाखें वीर जिणेसर त्यारे, में संयम लीधुं ज्यारे; वरस त्रण गयां त्यां निहालो, त्यारें कुशिष्य मल्यो रे गोशालो ॥ १५ ॥ तेजो लेश्या ते पण ग्रहतो दोय मुनिवर जिनने दहंतो; अंते पातिक तेह आलोइ, बारमे स्वर्गे सुरहोइ ॥ १६ ॥ For Pitvale And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंच क० स्तवन. ॥ १९ ॥
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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