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________________ %% % Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra 196++++++++ www.kobatirth.org. Acharya Shn Kailassagarsuri Gyanmandir सरताकीओ जी, उपर भमें सिंचाण रे प्रा० ॥ ७ ॥ आहेडी नागें डंस्यो जी, बाण लग्यो सिंचाण ॥ कोकूहो उडी गयो जी, जूओ नियत प्रमाण रे प्रा० ॥ ८ ॥ शस्त्र हण्यां संग्राममां जी, राण पड्या जीवंत ॥ मंदिरमांथी मानवि जी, राव्याहीन रहंत रे, प्रा० ॥ ९॥ ढाल चोथी ॥ बेडलें भार घणो छे राज वातां केम करो छो । ए देशी ॥ काल स्वभाव नियत मति कुडी, कर्म करे ते थाय ॥ कर्मे नरय-तिरय नर सुर गति, जीव भवांतर जाय ॥ १ ॥ चेतन चेतीयें रे कर्म न छुटें कोय ॥ ए आंकणी ॥ कर्मे राम वस्या वन वासें, सीता पामी आल ॥ कमें लंकापति रावण नुं, राज्य थयुं विसराल चे० ॥ २ ॥ कर्मे कीडी कमें कुंजर, कर्मे नर गुणवंत ॥ कर्मे रोग सोग दुःख पीडित, जन्म जाए विलवंत ॥ ० ॥ ३ ॥ कर्मे वरस लगें रीसहेसर, उदक न पामे अन्न ॥ कर्मे जिनने जूओ गमारे, खीला रोप्यां कन्न चे० ॥ ४ ॥ कर्मे एक सुख बेसें, सेवक सेवें पाय ॥ एक हय गय रथ चढ्या चतुर नर, एक आगल उजाय ॥ चे० ॥ ५ ॥ उद्यम मांनी अंध तणी परें, जग हींडे हा हुतो ॥ कर्म बली ते लहें सकल फल, सुखभर सेजें सूतो पालें For Pitvale And Personal Use Only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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