SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shi Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. कहे श्री मौन | त्रूटक- पूछे कृष्ण नरिंद विवेके, स्वामि इग्यारस मानि अनेके; तेहतणो कारण मुज भाषो, महीमा एकादशि तिथिनो थीरकरी दाखो || जी जीणंद जीजीरे ॥ ए आंकणी ॥ १ ॥ ढाल पूर्वली - नेम केशव सुणोरे, पर्व वडुं छे तेण; कल्याणक जिननां कह्यां रे, दोढसो ईणदिण जेण ॥ त्रूटकदोढसो इण दिन सूत्र प्रसीधा, कल्याणक दश क्षेत्रना लीधा; अतित अनागतने वर्त्तमान, सर्व | मली दोढसो तसमान ॥ जी जीणंद जीजीरे ॥ २ ॥ ढाल पूर्वली-कल्पवृक्ष तरुमा वडोरे, देवमाहिं अरिहंत; चक्रवृत्ति नृपमां वडोरे, तिथिमा तेम ए हुंत ॥ त्रृटक - तिथिमां तेम ए हुंत वडेरो, | भेदे कर्म सुभटनो घेरो; मौन आराध्युं शिवपद आपे, संकट वेल तणा मूल कापे ॥ जीणंद | जीजीरे ॥ ३ ॥ ढाल पूर्वली - अहोरतो पोसह करीरे, मौन तप उपवास; इग्यार वर्ष आराधियेरे, | वली इग्यारे मास ॥ त्रूटक - वली इग्यारे मास जे साधे, मन वच काया सुद्ध आराधे; भव भव सुखीया ते नर थासे, सुब्रत सेठ परें गवरासे ॥ जी जीणंद जीजीरे ॥ ४ ॥ ढाल पूर्वली - For Pivate And Personal Use Only Acharya Shn Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवनम्
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy