SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 386
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री मा. विमान जिनगृह घंट दीपे प्रत्येके षट्हजार ए ४ ॥ ढाल पूर्वली-एक लाखरे एंसी सहस्र जिन-3 स्तवनम् निकजिन बिंब ए, धरो ध्यानरे श्री जिननां अविलंब ए; आनत प्राणतरे सुरगृह घंटला, प्रतिचारसे बहोंतेर || सहस्र जिनवर भला ॥ त्रूटक-भला आरण अच्युते तिम विमान त्रणसें चित्तधरो, प्रासाद घंटा नाद त्रणसे प्रत्येकें पातिक हरो; चउपन सहस्र जिनराज प्रतिमा शाश्वति सूत्रे लही, ग्रैवेयकादि विमान संख्या सांभलो कहीशुं सही ॥५॥ ढाल-२-बीजी ॥ नींदरडी वेरण हुइ रही-ए देशी॥ नव अवेयके सांभलो, पंचानुत्तर हो असमान विमान के-सुदंसण सुप्रबुद्ध मनोरम, प्रथम त्रिकें हो तस ए अभिधान के ॥ शाश्वत जिन चित्तमां धरो॥ अंतरजामी हो आतम आधार के शाश्वत अंतर०॥ ए आंकणी॥१॥ विमान प्रासाद घंट रणझणे, प्रत्येके हो एकशत इग्यार के ॥ तेरसहस त्रणसें वीश, जिनपडिमा हो पहेले त्रिक सार के॥शाश्वत० अंतर० ॥२॥ सर्वतोभद्र सुविशाल ए, धन्य सुमनस हो द्वितीयत्रिक एह के ॥ एकशत सात विमानमां, प्रासाद घंटला Forme And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy