SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 356
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SM Mahavam A kende Achen Kai m andi 4%25 संयम श्रेणीनुं स्तवनम् 4- पांचडो स्थापीये फरी पण पूर्वनी रीतिए चोगडा चार ४ त्रगडा वीस २० बगडाशत १०० एकडा ५०० ।। अर्थ गर्भित मीडां २५०० स्थापीये तेवार पछी बीजो पांचडा स्थापीये ए रीते अनुक्रमे जे वारे पांचडा सहित चार थाय ते वारे अनंतगुण वृद्ध कंडक पूरूं थाय आगलपण चोथा पांचमाने अनंतर चोगडा ४ त्रगडा वीस २० बगडा शत १०० एकडा पांचसे ५०० युक्त मीडां पचीसें २५०० करीए एटले एक षट स्थानक पूरुं थयुषट् स्थानक मध्ये आंक तथा मीडांनी संख्या आवीते पश्चानुपूर्वीए कहीए छीए॥६॥ * गाथा-पांचडा चोगडा त्रगडा बगडा एकडा बिंदु, षट् स्थानकनां यंत्रनी संख्या कहे जिन चंद: चउवीस सय पणसय पचवीस सय सार, अंकमीडांगणतांसाढाबार हजार॥७॥ | भावार्थः-पांचडा तथा चोगडा तथा त्रगडा तथा बगडा तथा एकडा तथा मीडां तेहना समुदाय रूप षट् स्थानकना यत्रनी संख्या जिनचंद्र एवा ऋषभादिक कहे हे वीर परम इश्वर? तेम तमे फरसी |पांचडा चार ४ चोगडा वीश २० त्रगडा शत १०० बगडा पांचसे एकडा पचवीसें मीडांगणतां साढाबार सहस्र १२५०० सरवाले थयां एतावता अनंत गुण वृद्ध कंडक १ असंख्यात गुण वृद्ध कंडक ५ संख्यात 4-6 For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy