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संयम
श्रेणीनुं स्तवनम्
॥१६५॥
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भावार्थ:-अंगुल मात्र आकाश क्षेत्रनो भेद तेना असंख्यातमो भाग ते मांहि जेटलां आकाश प्रदेशछे ॥ तेटला अनंतभाग वृद्धिनां संयम स्थानक निपजे ॥ आगम परिभाषाए एटलां स्थानकनो समुदाय तेहने कंडकनी स्थापना जाणवी ॥ उक्तंच-कडातिए च्छभन्नइ, अंगुल भागो असंखिजो हवइ ॥७॥
गाथा-बीजे कंडक ठाणमांजी, आदि असंख अंसज्जाण; तदनंतर नंत भागतांजी, स्थानक कंडक माण• गुणो दधि० मेरु० ॥८॥ | भावार्थः-अनंत भाग वृद्धि कंडकने अनंतर असंख्यात भाग वृद्धिनुं कंडक मंडाय ते बीजा कंडकनी आदि स्थानक माहें अनंत भाग वृद्धि कंडकनां चरमस्थानकथी असंख्यातमे भागे वृद्धि जाणवी ॥ एटले प्रथम कंडकनां चरम स्थानकमांहे जेटलो अविभागछे ते असंख्यलोकाकाशना प्रदेशने वहेंची आपी एक प्रदेशने भागे जेटलो अविभाग आवे तेटलो असंख्यातमो भाग वधे तेने अनंतर अनंत भाग वृद्धिना स्थानक कंडक प्रमाण थाय ॥ तेकिम असंख्यात भाग वृद्धिनां प्रथम ठाणथी
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