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वर्धमान
तप
॥१४४॥
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॥ १ ॥ अमृत फल आखादिने ॥ राज० ॥ काढ अनादिनी भुख ॥ अहो ० ॥ भव परी भ्रमणा भमतुं ॥ राज० ॥ अवसर पामी नः चुक ॥ अहो० ॥२॥ शत साखाथी शोभतो ॥ राज० ॥ पांच| हजार पच्चास ॥ अहो० ॥ आयंबिल फुले अलंकर्यो | राज० ॥ अक्षय पद फल तास ॥ अहो ० ॥३॥ विमलेश्वर सुर शांति ॥ राज० ॥ तुं निर्भय थयो आज ॥ अहो० ॥ कृत कृत्य थइ मागतुं ॥ | राज० ॥ अकल स्वरुपी राज ॥ अहो० ॥ ४ ॥ विग्रह गति वोसरावीने ॥ राज० ॥ लोकाधे कर वास ॥ अहो० ॥ धन्यतुं कृत्य पूम्य तुं ॥ राज० ॥ सिद्ध स्वरुप प्रकाश ॥ अहो० ॥ ५ ॥ तप चिंता | मणी काउस्सग्गे ॥ राज० ॥ वीर तपो धन धन्य ॥ अहो० ॥ महासेन कृष्णा साधवी ॥ राज० ॥ श्रीचंद भवजल नाव ॥ अहो० ॥ ६ ॥ सुरि श्री जगचंद्रजी ॥ राज० ॥ हीर विजय गुरु हीर ॥ अहो० मल्लवादि प्रभु कुरगड | राज० ॥ आचार्य सुहस्ती वीर ॥ अहो० ॥ ७ ॥ पारंगत तप जल धिना ॥ राज० ॥ जे जे थया अणगार ॥ अहो० ॥ जीत्या जिव्हा वादने ॥ राज० ॥ धन्य धन्य तस अवतार ॥ अहो० ॥ ८ ॥ एक आयंबिले तुटसे ॥ राज० ॥ एक हजार दश क्रोड || अहो० ॥ दस
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स्तवनम्
॥१४४॥