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Shaha
na Kendre
Acharya Sh Kasagar Gyanmandie
-I-KANCER-
CiyoGAR-00
। रसें धनु मोझार रे; पोहली कही पंचाश धनुं रे, सोपान मयी श्रीकार भ०॥१३॥ पावडियां दश सहस,
छेरे;धरीए जाणो विस्तार रेबिजें पंच सहस कां रे, इमछे त्रिजे विचार भ०॥१४॥ पावडियां कर भुंइंथी ४ारे, उत्तंग छे निरधार रे; पंचावन्न रयण तणा रे, झलके चिहुं दिस बार ॥भ०॥१५॥ वीस सहस शुं
हुआ रे, संख्या ए मनोहार रे; उत्तंग भुंइ थकी कह्यो रे, अढि गाउ पायार ॥भ०॥१६॥ त्रण त्रण तारेण चिहुं दिसें रे; नील रयण मय चंग रे; मणी मय थंभ शुभ पूतली रे, करति नाटारंभ भ०॥१७॥
दुहा-भुवन पति पमुहा वली, देवें दो देव राय; लोक अछेरा कारणे, उज्जो गयणे सोहाय॥१॥ जीवनां भव दुःख वारणे, रजत सुवन्न उदार; रयणादि गढ वीर चतां, कोसीस नाना प्रकार ॥ भ० M॥२॥त्रीजुं वैमानीक सूर रचे, पीठिका पोहलि सार; दुसय धनुं उंचि कही, शोभत वृत्ताकार ॥३॥
ढाल गुण रसीया ॥ ए देशी १ इशान कुणे देव छंदो कह्यो रे, छाजे तरुवर शोक रे; मन वसीया जीन तनु मान प्रमाण छे रे, सम्यग्-लहे सुरलोक रे म०॥ १ ॥ चिहुं दीशे छत्र त्रण शोभतां, ढलकतां चमर रशाल रे म०॥ कौतुकें भवि मोह पामतां रे, श्री जिन ऋद्धि निहाल रे म०॥२॥
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