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SM Mahavam
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अद्वेषी अममत्व नि रागी, अभ्यंतर सोभागी जी ॥ पं०॥ ६॥ जयवंतो जीन शासन नायक, एणि परें संयमपाले जी; त्रीजु कल्याणक दीक्षा केरुं, प्रभु विनयें दुःख गाले जी ॥ क्षमा गुण भवि भाले| जी ॥५०॥७॥ इति श्री तृतीय कल्याणकं समाप्तम् ॥
॥अथ श्री चतुर्थ केवल ज्ञान कल्याणकम् ॥ | इम वीहरंता आवीया, गजपुर गुण गंभीर; पावन करतां भव्य नें, सहसा वन सुधीर ॥१॥ छद्मावस्था भोगवी, एक वरस भगवंत; अनुभव आतम गुण नीलो, शांतदया गुणवंत ॥ २॥ पोष शुद नवमी वासरे, तरू नंदीतले जाण; शुक्ल ध्यान मनध्यावतां, निरुपम केवल नांण ॥३॥ ढाल गुणी जन वंदो रे ॥ ए देशी ॥ वंश विभूषण साहेबा रे, केवल नाण उपाय रे; समवसरण संक्षेपथी रे, वर्णवियो गुरुराय भवियण वंदो रे वंदोवंदोरे अचीरानंद ॥ परिमाणंदो रे॥१॥आंकणी।। तीर्थंकरनाण उपजें रे, आवे इंद्र मनोभाव रे; निजनिज कर्मनें करवा थी रे, बहुमणी रयणने लाव भ०॥२॥ वायूकुमार धूर वायरो रे, जोयण भूमीका शुद्धरे; कलेवर जीवनां दुर करीने,
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शां.२०
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