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मादल ताल रे हुं० वारिलाल ॥ वीणा वाजिंत्र बहु वाजते रे लाल, सिरी मंडल कंसाल रे ९० वारिलाल ॥ दान ॥ ६॥ सूर मानव विद्या धरु रे लाल, बोलतां जयजय कार रे हुं० वारिलाल॥ सहसा वनें प्रभु आवियां रे लाल, उतारयां अलंकार रे हुं० वारिलाल ॥ दान० ॥७॥ कृष्ण ज्येष्ठ चौदश दीने रे लाल, भरणी रिख शुभ वार रे हुं० वारिलाल ॥ पंचमुष्टी लोच द्रव्यथी रे लाल, भाव सामायक धार रे १० वारिलाल ॥ दान०॥८॥ स्वमुखें"नमो सिद्धाणं” जपे रे लाल, छठ तप करे चउवीहार रे १० वारिलाल ॥ देवें चिवर स्कंधे स्थापीया रे लाल, सहस स्युं संयम सार रे ह० वारिलाल ॥ दान०॥९॥ मनःपर्यव तव उपन्युं रे लाल, मति श्रुतअवधि श्रीकार रे ई० वारिलाल ॥ अप्रमादीपणे नित्य रहें रे लाल, जीव दया भंडाररे हुं० वारिलाल ॥ दान० ॥ १०॥ धन्य धन्य विश्वसेन रायने रे लाल, धन्य धन्य अचिरा मात रे हुं० वारिलाल ॥ धन्य धन्य जिन-2 चक्री पंचमो रे लाल, जायोजेणे शुभ जात रे ९० वारिलाल ॥ दान०॥ ११॥ इति श्री संवत्सरी दानदीक्षा वरघोडो महोत्सव संपूर्णम् ॥
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