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________________ SM Mahavam A kende Acharya Sh Kailasagar Gyanmandi श्रीसंवत्सरी दानस्तवन. ना देनारे ॥ श्री॥१३॥ चर्मइंद्र जीन मुठीना देनारा, एलेवे जो अधीका होयरे; उछाहोय तो| पुराकरे बलेंद्र, सामानी प्राप्ति जोइ रे ॥ श्री० ॥ १४ ॥जिन आगल रहे उभो इशानेंद्र, रत्न जडीत लेइ लखुटीरे; देवअसुर कोइ विघ्न करतो, काढे तेह कुटीरे ॥ श्री ॥ १५॥ भुवनपति सुर भरतना जनने, दानलेवा तेडी आवे रे; व्यंतरनांसुर पाछाते जनने, नीज नीज मंदीर ठावेरे ॥ श्री १६ ॥ ज्योतिष्य सुरमली वीद्याधरने, दानलेवाने ते जणावेरे; एवा अतिशय तीर्थंकरना, कहेतां पारन आवेरे ॥ श्री ॥ १७ ॥ चोसठ इंद्रादीक जिन आगल, लीजिये दान उच्छाहेरे; बारवर्ष लगे कलहो न आवे, तेहने पण मांहो महेिरे ॥ श्री ॥ १८॥ चक्रिहर नृप दानना टका, मुके ते नीज कोस उलटे रे; बारवर्ष लगे ते कोस टंका, काढतां किमही न खुटेरे ॥ श्री ॥ १९ ॥ इत्यादीक ते दान थकीजस, एकवर्ष जस गवायरे; वलि दानथी बार वर्षनां, रोगीनां रोग ते जाय रे ॥ श्री ॥२०॥ |वलीतस तनुए रोग न प्रगटे, बार संवत्सर सुधीरे; मंद बुद्धिकोइ दानज लेवे, तेहोवे ते सुरगुरु बुद्धिरे ॥ श्री ॥ २१ ॥ एवा पंचदश अतीशय प्रभुना, वर्षीदाने प्रगटे रे; इम दानदेइ प्रभु संयमलेइ, उप 25+SAGACASSE-5GNE ॥९०॥ For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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