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________________ SM Mahavam A kende Achan Kailas Gyamandi धर्मथी सुर सान्निध्य करे होलाल०, धर्म पाली राज्य; साहे०; कोई सद्गुरु संजोगथी हो लाल, थयां त्रणे ऋषिराज; साहे० ॥ पर्व ॥९॥ ___ ढाल-आठमी ॥ टुंक अने टोडा विचेरे ॥ सदगुरु वयण सुधारस्येरे ॥ ए देशी ॥त्रणे नरपति जाए आदर्यो रे, चोखो चारित्र भार; संयम रंग लागो; तप तपता अति आकरा रे, पाले निरति चारः संयम०॥ए आंकणी॥१॥ध्यान बलेथी क्षय कर्यां रे, घनघाती जे च्यार; संयम; केवलज्ञान लही करी रे, विचरे महीयल सार; संयम० ॥२॥श्रेष्ठिसुर महिमा करे रे, ठाम ठाममनोहार; संयम०; देशना देता केवलिजी, भाखे निज अधिकार; संयम; ॥३॥ पर्व तिथी आराधिए रे, भवियण भाव उल्लास; संयम; इम महिमा विस्तारीने रे, पाम्या शिव पुर वास; संयमः॥ ४ ॥ बारमा देवलोकथी चवीरे, श्रेष्ठिसुर थया राय; संयम महिमा पर्वनो सांभली रे, जाति स्मरण थाय; संयम॥५॥ संयम ग्रही, केवल लही रे, पाम्या अविचल ठाम; संयम; अव्यावाध सुखी थयां रे, केवल चिद् आराम; संयम, ॥६॥ ढाल-नवमी ॥ राग-धन्याश्री, ॥ गिरुआ रे गुण तुम तणां ॥ ए देशी ॥ उजमणां ए तप For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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