SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला तेरे शत्रु है मदमत्सर इन्होको दावते रहना, क्रोध अहंकार कर दिल को दुखाना ना मुनासिब है ||२|| रोक मन भोग विशयोंसे जरा इन्द्री को वश करले, नैन त्रिया पराईपे चलाना ना मुनासिब है ॥ ३ ॥ पटपट काट के भरले हरी रस खूब हृदय में, प्रभु व्यापक हैं घट घट मे भुलाना ना मुनासिब हे ॥ ४ । मगन भक्ति मे हो रहना जबर हे नामकी महिमा, हिराचन्द इस दिलको डिगाना ना मुनासिब हे | अगर० । ५ For Private and Personal Use Only ४३ ( ८ ) [ गजल. ] सत्य मत हार रे सुरो, जो सम्पति जा तो जाने दे । पर उपकार मे तेरी, विके तन तो विकाने दे । १ । अहिंसा जो बडा भारी, धर्म जगमे रहाता है । करो तुम तन व मन धनसे, लोग रिसे तो रिसाने दे |२| पिशाची रूप हे नारी, बिछाई जाल माया की । तु मनको राख काबू मे, वे रिझावे तो रिझाने दे । ३ ये जिव्हा तेरी ऐ प्यारे, अंत कुछ काम नही आवे । हिराचन्द को प्रभुका नाम, निराहर वक्त गाने दे । ४ ।
SR No.020387
Book TitleJain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH P Porwal
PublisherJain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay
Publication Year1928
Total Pages49
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy