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जिनगुणहीरपुष्पमाला
४१
॥ गजल.॥
कन्याको बेच पैसा, लेता फजूल क्यों हैं । टेर। बेटीको बेच प्यारे, पापोके बांध भारे । दिल क्रोध करके गाली, देता फजूल क्यों हैं। क. १ करता हे काम कैसा, बेटी का लेय पैसा। कन्या का अन्न खाके, जीता फजूल क्यों है । क० । २ हिराचन्द पाहे रसीला, कलियुगकी देख लीला. खोटी है मार जमकी, सहता फजूल क्यों है । क० । ३
[ गजल धुन कव्वाली.] बुरी आदत हमारी है, छुडालो त्रिसलाके नंदा । आपका चर्णरज मुजको, बना दो त्रिसलाके नंदा ॥१॥ लगा तकिया गुनाहोका, पडा दिन रात सोता हुं। मुजे इस रब्वाचे गफलत से, जगा दो त्रिसला के नंदा.२ पडा आके भव दरियामे, भंवर मे खा रहा चक्कर । सहारा दे किनारे से, लगादो त्रिसला के नंदा ॥३॥ मिले जिनराजकी पूजा, धन्य किसमत हमारी है। कहे हिराचन्द घट मे, दिखा दो त्रिसला के नंदा ॥४॥
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