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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनगुणहीरपुष्पमाला (तरज-तरकारी ले लो मालन तो आइ विकानेर से ) क्यों भुला बंदे रट ले प्रभु जिनराजको महाराजको. टेर. तन धन जोबन सुपना जगमे, क्यों सोता गफलतमे; प्रभु भक्तिमे मनको लगाले, छोड जगतके धन्दे, १ मात पिता सुत वहन भ्राता, मुखका है सवी नाताः अन्त समय कोइ सथा न आवे, टुट जावे सब फन्दे.. २ महल अटारी बाग बनावे फुला नही समावे; काल बली जब आन दवावे, हो जावे सब गन्दे. ३ विषय भोगमे उमर गमाइ, धर्म वस्तु नही पाइ; अब तो सिमर प्रभु पारसको, तोड' कर्मके फन्दे, ४ यह संसार असार है पाणी; यह तूने नही जानीः एच. पी. जैन, कहे तुमसे, मत फसो कर्मके फंदे. ५ ॥ मजा देते है क्या यार, तेरे बाल गुंगर वाल-ए देशी ॥ नमन करुं पार्श्वनाथ भगवान, भवोदधि पार लगाने वाले. पुरुषा दानी प्रभु पास, नही आसपास तुम वास; आसा कीनो जगदास पास भविजनके हटाने वाले. १ For Private and Personal Use Only
SR No.020387
Book TitleJain Gajal Manohar Hir Pushpmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH P Porwal
PublisherJain Parmarth Pustak Pracharak Karyalay
Publication Year1928
Total Pages49
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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