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जोजन श्रादरे, खोट वखाण तेहनुं नवि करे ॥४॥ एक चबु बेई कोगलो, उतारे घटमांहि निर्मलो॥ बाकी कोगला नाखे सही, पशु परें जल पीएं नहीं ॥ ४५ ॥ पीतां पाणी रहे वली जेह, नूमि उपर खेशनाखे तेह ॥जल जाजु नवि पीजें वीर, मोढे बोक न दीजें धीर ॥ ४६॥ जोजन करीने कहे नो कार, चैत्यवंदन ते जगमां सार ॥ नीनो हाथ बीजा हाथरां, न घसे पाय अने मोहरां ॥४७॥ फेरे हाथ ढीचण पर धरे, लोजन करी बालस परिहरे ॥ वडी नीति तजे तिणि वार, नवि बेसे उघाडे बार ॥४॥ सनान शीद करे गुणवंतो, माबे पासें सूवे जागतो ॥के सो मंगलां नरवां वेठ, जमी बेसतां वाधे पेट ॥४॥ चित्तो सूतो बलखो थाय, माबे पासें वाधे आय ॥ शास्त्रंथी जोजन विधि लही, रुषन्ने तुम हितशिदा कही ॥ ५० ॥ सर्वगाथा ॥ ५ ॥
॥ ढाल ॥सांसो कीधो शामविया ॥ए देशी॥
॥राग गोडी॥एणी परें आरोगीने उग्यो, खावां फोफल पान ॥ अति बलवंत होये तंबोलें, वाले देहनो वान ॥ १॥ सबल सवीर्यने पित्तकर होये, शमे कफ ने वाय ॥ खर वाधे ने अगनी दीपे,मुख
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