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(५७) क मागशिर मासे जोय, मले दूध पीयो सहु कोय ॥॥ पोष मास माघ महिनो जिसें, जासक जिम q नांख्यु तसे ॥ फागुण चैत्रे क्रीडा करे, वैशाख जे ठमां निखा शिरें ॥ २७ ॥ ग्रीष्मरतें हरडे ते सार, सरखे गोले होय गुणकार॥ वर्षारतें सैंधव मेलियें, शरद कालें साकर नेलियें ॥शए॥ हेमंतरतें हरडे ने सूत, पबर नांजे मारे मूठ ॥ शिशिर रतें पीपरी शुं खाय, तेहने रोग कदिये न थाय ॥३०॥ वसंत मांहे मध साथें कही, सकल रोग दय करती लही ॥हरडना गुण बहु कहवाय, नहिं जननी तसु हर डे माय ॥ ३१ ॥ अतिसार नर जेहने होय, नर्बु धान्य नर मे सोय ॥ नेत्ररोगीयो मैथुन तजे, तुरत व्याहीतुं दूध नवि नजे ॥३॥ उत्सुक पंथी एकदा जमे, निरवद्य आहार अचित्त मन गमे ॥ एवडं न वि सचवाये जोय, नोकारसी तो कीजें दोय ॥३३॥ वादु करी करवं पञ्चरकाण, चार आहार मे नर जाण ॥ नवि चाले तो पाणी पिये, त्रण आहार ते मुख नवि दिये ॥३४॥ कांश्क नित्य करे पच्चरकाण, चउदे नियम संजारे जाण ॥ अनंतकाय अनदय नवि जमे, अनंत मरण करी ने नमे ॥ ३५ ॥ जाजूं
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