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(५०) त्तर नेद पण लहियें रे॥ कहिये रे ॥ श्राप पंच त्र ण विधि जला ए ॥ २७ ॥ ए जिन पूजा विधिक ह्यो, जावें जीव जब कीजें रे ॥ दहीजे रे ॥ पातक षन कहे सही ए ॥ २७ ॥ सर्वगाथा ॥ ४३१ ॥
॥दोहा॥ ॥ जिनपूजा जस घर नहिं, नहिं पात्रे जिहां दान॥ते केम पामे बापडो, विद्या रूप निधान ॥१॥ तिलक नहिं केशर तणां, घृत दीवो नहिं ज्यांहि ॥ तास जनम लेखे नहिं, ते घर नहिं घरमांहि ॥२॥ शिख देखं तुम शुन परें, जिनपूजा द्यो दान ॥ दाने जिनपदवी सही, चक्री देव विमान ॥३॥ एक दान तसु पंच नेद, विवरी कहुं विचार ॥ अजय सु पात्र कीर्ति लही, उचित अनुकंपा सार ॥४॥ ॥ ढाल ॥ सुरसुंदरी कहे शिर नामी ॥ ए देशी ॥
॥ राग मालवी गोडी॥अनुकंपा महोटुं दान, गज श्राणी हैडे शान ॥ शशलो उगास्यो सार, धन्य धन्य तुं मेघकुमार ॥ १॥ श्रेणिक तणो सुत होय, शुन संयम खेतो सोय ॥ पाम्यो अनुत्तर जेह विमान, प सघु अनुकंपा दान ॥२॥ धन्य बाहुबली अव तारो, उचितदान तणो दातारो ॥ दुर्ड जरतेसर
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