SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५०) त्तर नेद पण लहियें रे॥ कहिये रे ॥ श्राप पंच त्र ण विधि जला ए ॥ २७ ॥ ए जिन पूजा विधिक ह्यो, जावें जीव जब कीजें रे ॥ दहीजे रे ॥ पातक षन कहे सही ए ॥ २७ ॥ सर्वगाथा ॥ ४३१ ॥ ॥दोहा॥ ॥ जिनपूजा जस घर नहिं, नहिं पात्रे जिहां दान॥ते केम पामे बापडो, विद्या रूप निधान ॥१॥ तिलक नहिं केशर तणां, घृत दीवो नहिं ज्यांहि ॥ तास जनम लेखे नहिं, ते घर नहिं घरमांहि ॥२॥ शिख देखं तुम शुन परें, जिनपूजा द्यो दान ॥ दाने जिनपदवी सही, चक्री देव विमान ॥३॥ एक दान तसु पंच नेद, विवरी कहुं विचार ॥ अजय सु पात्र कीर्ति लही, उचित अनुकंपा सार ॥४॥ ॥ ढाल ॥ सुरसुंदरी कहे शिर नामी ॥ ए देशी ॥ ॥ राग मालवी गोडी॥अनुकंपा महोटुं दान, गज श्राणी हैडे शान ॥ शशलो उगास्यो सार, धन्य धन्य तुं मेघकुमार ॥ १॥ श्रेणिक तणो सुत होय, शुन संयम खेतो सोय ॥ पाम्यो अनुत्तर जेह विमान, प सघु अनुकंपा दान ॥२॥ धन्य बाहुबली अव तारो, उचितदान तणो दातारो ॥ दुर्ड जरतेसर For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy