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(३५) लिये संयम नार ॥ १॥ महापापी नर हुंता जेह, धर्म प्रजावें ब्रजया तेह ॥ सुसमाने दृष्टांतें जोय, पुत्र चिलाती धर्मी होय ॥२॥ फल्युं फूट्युं तात घरसार, ते बंमयो ढंढणा कुमार ॥ नूख तरश खमतो मन रसी, बठे मासे हुवो केवली ॥३॥हित उप देश महिमा जाणियो, अपणुं पाम्यो वाणियो ॥ कुंमल किरिट तणो धरनार, अलंकारनो न लडं पार ॥४॥ हित उपदेश कह्याथी सहु, कार्तिक शेठ सुख पाम्यो बहु॥सुधर्म इंड हु ते सार, जेह नी कि तणो नहिं पार ॥ ५ ॥ इंश समी रिकि कहि जेह, नरत चक्रवर्ती पाम्यो तेह॥ मानव लोक नो स्वामी कह्यो, हित उपदेश कथाथी थयो ॥६॥ धर्मदेशना सुणतो जदा, संदेह अज्ञान टले नर तदा ॥ कर्मे दृढ व्यसन मूकतो, मारग सूधो जाणे बतो ॥७॥टले कषाय विनय पण नजे, संगति सार कुसंगति तजे॥ समजे श्रावक मुनिवर धर्म, ते सुख पामे परगट परम ॥७॥ कुमारपाल थावच्चो सुणो, गुण हर्ड परदेशी घणो ॥ श्वेतंबिका नगरीनो नाथ, हणी जीव न धोतो हाथ ॥ ए ॥ चित्र सारथि मंत्री जेह, सावत्रीयें श्राव्यो तेह ॥ केशी गणधर तिहां
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