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________________ www.kobatirth.org ( २६ ) विकसे कमल जिम, मन पंजरे न माय ॥ २ ॥ सा रुं फूल सेवंत, जोमि पड्युं करमाय ॥ ते न कहि जें मानवी, जे प्रीति करीनें जाय ॥ ३ ॥ सखि दे तें केम विसरे, जे मनमांहे पश्5 || हियडाथी जो उतरे, तो सुपनांतर दीठ ॥ ४ ॥ स्वामि तुम चालो सही, मुजनें लीजें साथ || दिवस दोहेलो करी निर्ग मुं, पण नवि जाये रात ॥ ५ ॥ बांजण कहे रे बा पडी, लावीश जाजुं धन्न ॥ सुख जर रहेशुं बेठ ज यां, पढे जिम ताहरु मन्न ॥ ६ ॥ नारी कहे तुमें चालतां, कोण होय मुज सहाय ॥ बांजण कहे तुम सांजलो, गोविंद करे चिंताय ||७|| इस्युं कहीने संच यो, घर रहि चंचल नार ॥ नव यौवनवय चालियो, केइ परें मन रहे वार ||८|| स्त्री विए अंकुश नईत रुं, मंत्रिविद्वणुं राज ॥ ए बहुकाल रहे नहिं, कषन कहे न रहाज ॥ ७ ॥ न रही शीलें बांजणी, करे गोविंद जोग ॥ मनमें चिंते बेदु जणां, जलो मि ब्यो संयोग ॥ १० ॥ रूडां माणस कारणें, जो जग वैरी होय ॥नमर न ढंके केतकी, जो शिर कप्पे को य ॥ ११ ॥ विषहर वाडीने विषम घर, पंचाश्ण र कंति ॥ जो जम बेसे बारणे, रत्ता तोडु मिलंत ॥ १२ ॥ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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