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(२०) चारे बोलनो कडं विचार ॥ ५ ॥आहार करंतां होये रोग, क्रूर गर्न करंतां जोग ॥ निसा करतां ल खमी जाय, मरण दोष आपे ससाय ॥६॥ तेणें कारणे चारे परिहरे, सांक समय पडिकमणुं करे॥ धूवे पाप दिवसनां सहू, वली पुण्य पोतें होय बहु ॥७॥ गुरु समीपें श्रावी पडिकमे, घडी दोय शुन ध्याने रमे ॥ मुसा त्रणनो जाणे नेद, आलस-अंग थी करे निषेध ॥ ७॥ वली खमासण दीये पंचां ग, जो पडिक्कमणां साथें रंग ॥ रजोहरणो उछाल मुहपत्ती, अलगी न करे ते मुहथी ॥ ए॥ उज्ज्व ल पाडुंज अखंम, नहिं संधीयुं नहिं त्यां दंग ॥ करि पडिसेहण पडिकमणुं करे, अर्थ सूत्र तणा म न धरे ॥ १० ॥ सुणे स्तवन पोते पण कहे, लागी लय तो पातक दहे॥सुणतां कहेतां होय कषाय, तो पातक बांधी घर जाय ॥ ११ ॥ शांति गुणी क रवो सनाव, पोरसी सांजलीने घर जाय ॥ए हितशि क्षा षनें कही, सांऊ समय पडिकम, सही॥१२॥
॥ ढाल ॥ कुंगरियानी देशी॥ ॥ सांऊ समय रे दीवो करे, मांगलिक होये तस घरे रे ॥ दान स्नान देव पूजवा, नहिं ते निशि न
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