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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (०१) तान जाउँ तुम तणुं, तुम संतान म होजो जणुं ॥ वचन फोतरांनुं त्यां थाय, वाव्या नवि ऊगे चोखा य ॥ए ॥ श्ण दृष्टातें सुणजो सहु, संपें रहेतां सुख लहे बहु॥आप वरगने मेजेह,चोखापरें कूटा ये तेह ॥३०॥ को एक समय जल परबत धरा, फा डे पाले पर आकरा ॥ को एक समय बहु तर णां मली, बांधे ने जो जलने वली ॥३१॥ ए ह टांत ते हियडे धरो, श्रावक एकगं रहेQ करो ॥ वर्गमांहि वढो म म कोय, सजन उचित साचव यूँ जोय ॥३२॥ उचित हवे अन्य दरिसण तणुं, कांक वित्त आपे श्रापणुं ॥ नूपति माने वली जेह ने, विशेष थकी श्रापे तेहने ॥ ३३ ॥ किंचित् दा न तो देवू खरे, नमस्कार तेहने नवि करे ॥ तेहनो पक्ष करे नहिं कदा, कहेतां अनुमोदन होय सदा ॥ ३४ ॥ गुण नवि बोले तस गहगही, घरे श्रावे तो आपे सही ॥ मीतुं बोले श्रासन देह, एम उचि त तेहy साचवेह ॥ ३५ ॥ करे चोलणा शिष्य उ चरे, सूधो श्रावक ए किम करे ॥ गुरु कहे ए डे जलो उपाय, जैनधर्मने साहामो थाय ॥३६॥ एणे दृष्टांतें देवु सही, वीर वात करीने कही। सम For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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