SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२ ) थया ॥ जिम ते उनिया पहेली बहू, नांखे घरनुं एवं सहु ॥ २१ ॥ खाधावती सोंप्यं रांधणं, त्रीजी रखियाने राखणं ॥ चोथी रोहणीने घरनो जार, वधारतां आचारज सार ॥ २२ ॥ ए दृष्टांत सुणी शुभ शिखी, धर्म वधारे सूधो कृषि || लोढी वहूनी पेरें वली, तेह तणी मन इछा फली ॥ २३ ॥ करी परीक्षाने सोंप्यो जार, अन्यपुरुषने एह प्रकार ॥ सांग सुतहित शिक्षा कहे, सुणे सोय एक ध्यानें रहे ॥२४॥ ॥ ढाल ॥ गुरु गीतारथ मारग जोती ॥ ए देशी ॥ ॥ एम वहू सुतनी परीक्षा करीने, सोंपे घरनो जारो ॥ सुत शिष्यने प्रशंसे मोढे, होये निमान पारो हो ॥ विका, सांजलजो हित शिक्षा ॥ १ ॥ ए कणी ॥ श्रीदेवगुरुनी मुखें स्तुति कीजें, मित्र नाई नी पूंठे ॥ सेवकना मुख उपर कीजें, सुतनी न करे जूठे हो ॥ ज० ॥ २ ॥ स्त्रीनी स्तुति करवी स्त्री यागें, जेम नर जगति करेय || राउलमांहे जाय पिताजी, पुत्रने पूंठे लेय हो ॥ ज० ॥ ३ ॥ देश विदे शनी वात सुणावे, तेणें सुत माह्यो थाय ॥ सकल विद्या सुतने शीखवजे, जेम बेतस्यो नवि जाय हो ॥ ज० ॥ ४ ॥ उचित सगानुं सवि साचवीयें, पगर For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy