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कहे बेनी कोनी दीकरी, ते कन्या बोली त्यां फरी ॥ १७ ॥ श्लोक ॥ " पर्वताग्रे रथोयाति, भूमौ ति ष्ठति सारथिः ॥ चलति वायुगेन, तस्याहं कुलबालि का" ॥१८॥ परजापतिनी ए दीकरी, पण विद्यायें पूरण जरी ॥ हरखी पंक्ति यघा जाय, कुमरी एक मेला पक थाय ॥ १७ ॥ " श्लोक ॥ अजीवा यत्र जीवं ति, निःश्वसंति मृताश्रपि ॥ कुटुंबकलहो यत्र, तस्याहं कुलबालिका ॥ २० ॥ ए बूहार तणी बालिका, मधुर बोल बोले मुख्यका ॥ जोज नगर विबुधें परव, हरखी गल जानुं कयुं ॥ २१ ॥ कुमरी एक मिली फूटरी, बोलंती जननां मन हरीरी ॥ श्लोक एक कह्यो तिहां रही, पुरुष सो सुष्यो गहग ही ||२२|| " " लोक ॥ शिरोहीना नरा यत्र, द्विबाहु करवर्जिताः ॥ जीवंतं नरं जति, तस्याहं कुलबा लिका ||२३|| " जाणी दरजीनी दीकरी, यागल पुरु प गया परवरी ॥ कुमरी एक मली जेटले, बोलावी वेगें तेटले ||२४|| " श्लोक ॥ जलमध्ये दीयते दानं, प्रतिही न जीवति ॥ दातारो नरकं यांति, तस्याहं कुलबालिका ॥ २५ ॥ " जाणी माबीनी ते धीय, स मकी पंदित चाल्या तेय ॥ आव्या व्यंतर वाले घेर,
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