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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६५) तो वानरो, कवण पुरुष श्राव्यो अहीं ॥ कवि शष न कहे नर कामवश, श्यां श्यां वचन खमे नहिं ॥१॥ ॥दोहा॥ ॥ कंजप पाखें जग वडो, मूत्रानो मारणहार ॥ इंडिय पंच हीणां पड्यां, तोहु नजे विकार ॥१॥ ॥ ढाल ॥ पाट कुसुम मालती ॥ ए देशी॥ ॥ विषय विकार अडे चिहु गतिमां, इंश नमय स्त्री पाय ॥ महोटा मुनिवर मीण मगाव्या, पशुयें नवि मूकाय ॥हो देवा विषयने कादवें कलिया ॥ पापी काम थकी जे विरम्या, ते जगमांहि बलिया ॥ हो देवा ॥ ए आंकणी ॥१॥ कालो श्वान कोयो दोय कानें, नूख्यो कदा न धराय ॥ अधम जीवविषयनो विहल, शूनी देखी युं जाय ॥ हो देवा ॥२॥ पगे खोडो घरडो ने काणो, कीडा पड्या बहु अंगें ॥ रू पहीण चांदी तस वांसे,रहेतो शूनी संगेंहो देवा॥ ॥३॥मानवने पापी एपीडे, नारीने पाये पाडे ॥इंडिय पांच पडयांजो ढीलां,मोह्यो कंचुकी साडें ॥ हो देवा ॥४॥ मागी नीख ठगेवरमांहि जिमतो, ते पण नी रस आहारो॥ स्त्रीसेवा कारण ते हीसे, विरु काम विकारो ॥ हो देवा ॥ ५ ॥ श्राहार कवेला रहेवे For Private and Personal Use Only
SR No.020379
Book TitleHitshikshano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdas Shravak
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages223
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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